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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.५ सू०१ पर्यवादिनिरूपणम् चलिकारूपम् पल्योपमं भवति किन्तु 'असंखेजाओ आलियानो' असंख्याताचलिकारूपं भवति तथा 'णो अर्णताओ आवलियाओ' नो अनन्तावलिकास्पं परयोपमं भवतीति । 'एवं सागरोवमेवि एवम्-पल्योपमवदेव सागरोपममपि न संख्यातावलिकारूपं न वा अनन्तावलिकारूपम् किन्तु असंख्यातावलिकारूपमेव भवतीति । एवं ओसप्पिणी वि एवं सागरोपमवदेव अवसर्पिणी कालोऽपि न संख्यातावलिकारूपो न वा अनन्तावलिकारूप: किन्तु असंख्यातापलिकारूप एव भवतीति। 'उस्सपिणीवि' उत्सर्पिणीकालोऽपि एवमेव-सागरोपमवदेव न संख्याता बलिकाल्पो न वा अनन्तावलिकारूपः, अपि तु असंख्यातावलिकारूप एव भवअथवा अनन्त आवलिका रूप होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गौयमा ! णो संखेजाभो आवलियाभो' हे गौतम । पल्यो। पमरूप काल संख्यात आवलिकारूप नहीं होता है किन्तु 'अमंखेज्जामो आवलियाओ' असंख्यात आवलिकारूप होता है । वह 'नो अणंताओ आवलियाओ' अनन्तआवलिका रूप भी नहीं होता है। 'एवं सागरो. वमे वि' पल्योपम के जैसे ही सागरोपम काल भी असंख्यात आवलिकारूप ही होता है-संख्यात अथवा अनन्त आवलि कारूप नहीं होता है। 'एवं ओसप्पिणी वि' इस प्रकार से सागरोपम के जैसा ही अवसर्पिणी काल भी संख्यात आवलिका रूप अथवा अनन्तावलिका रूप नहीं होता है किन्तु असंख्यात आवलि कारूप ही होता है । 'उस्स. पिणी वि' उत्सर्पिणी काल भी सागरोपम काल के जैसा संख्यात आवलिका रूप नही होता है और न अनन्तआवलिकारूप होता है मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामी २ ४ छ -'गोयमा । णो संखे ज्जाओ आवलियाओ' 3 गौतम ! ५८यापम ३५ ॥ ज्यात भात ३५ डात नथी. ५२ 'असंखेज्जाओ आवलिया भो' असण्यात भापति ३५ हाय छे. तेणो अणताओ आवलिया ओ' मनात मावलि ३५ ५५ लाता नथी. “एवं सागरोवमे वि' से प्रभा-मेटले पक्ष्ये।५म न ४५४ प्रमाणे र સાગરેપમ કાળ પણ અસંખ્યાત આવલિકા રૂપ જ હોય છે. સંખ્યાત અથવા अनतम ३५ हातानथी 'एवं ओस प्पिणी वि' मे प्रमाणे सागशेपम કાળ ની જેમ અવસર્પિણી કાળ પણ સંખ્યાત આવલિકા રૂપ અથવા અનંત मालि। ३५ नयी जाता ५२'तु असण्यात आला ३५०४ डाय . 'उस्स पिणी वि' में प्रभारी Grafeelm ५Y साग३५ जना यन प्रभारी સંખ્યાત આવલિકા રૂપ લેતા નથી તેમ અનંત આવલિકા રૂપ પણ હતા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬