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___मगवतीले प्राप्त इति पृच्छा-प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम' 'दुविहे पन्न' द्विविधः प्रज्ञप्तः, द्वैविध्यमेव दर्शयति-तं जहा' तद्यथा-'णिजि.
समाणए य-निविटकाइए य' निविश्यमानकश्च निर्विष्टकायिकश्च परिहारकतप. स्तपस्यन निविश्यमाना, निविश्यमानकस्य वैयावृत्यकारको निर्विष्टकायिक इति । 'सुहुमसंपरायपुच्छा' सूक्ष्मसंपरायकः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्त इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहे पन्नत्ते' द्विविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तथा 'संकिलिस्समाणए य विसुद्धमाणए य' संक्लिश्यमानकश्च विशुद्धयमानकश्च, उपशमश्रेणीतः प्रच्यवमानः प्रथमः, उपशमश्रेणी क्षपकश्रेणी वा समारोहन द्वितीयो भवतीति । 'अहक्खायसंजए पृच्छा' यथाख्यात'गोयमा! दुविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! परिहारविशुद्धिकसंयत दो प्रकार का कहा गया है । 'तं जहा' जैसे-'णिविस्समाणए य निधिकाइए य' निविश्यमानक और निविष्टकायिक इनमें जो परिहारक संबंधी तपों को तपता है वह निश्यिमान है और निर्विश्यमान की वैयावृत्ति करने वाला जो होता है वह निर्विष्टकायिक है।
'सुहमसंपराय पुच्छा' हे भदन्त ! सूक्ष्म संपरायसंयत कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! सूक्ष्मसंपरायक संयत दो प्रकार का कहा गया है'तं जहा' जैसे 'संकिलिस्समाणए य विसुद्धमाणए य' संक्लिश्यमानक
और विशुद्यमानक उपशमश्रेणी से जो गिरता है वह संक्लिश्यमानक है और जो उपशमश्रेणी पर अथवा क्षपकश्रेणी पर आरोहण करता है वह विशुद्धमानक है। पन्नत है गौतम ! परिहार विशुद्धि: सयत में प्रा२ना ४ा छे. 'तजहा' a प्रभाव 2. 'णिव्विस्समाणए य निविद्काइए य' निविश्यमान भने નિવિષ્ટકાયિક તેમાં જે પરિહારક સંબંધી તપ તપે છે, તે નિર્વિશ્યમાન છે, અને નિવિશ્યમાનની વૈયાવૃત્તિ-સેવા કરવાવાળા જેઓ હોય છે, તે નિર્વિષ્ટ. કાયિક કહેવાય છે. 'सुहुमसंपरायपुच्छा' ७ मापन् सूक्ष्म स५२।
य सयतमा आरन छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ -'गोयमा ! दविहे पन्नत्ते' गीतम! सूक्ष्म स५२।यवा सयत में प्रा२ना ह्या छ. 'तजहा' ताप्रमाणे छे. 'संकिलिस्समाणए य विसुद्धमाणए य' ससिश्य भान भने વિશુદ્ધમાનક, ઉપશમશ્રણથી જેઓ પડે છે, તે સંકિલશ્ય માનક હોય છે, અને જે ઉપશમશ્રેણી પર અથવા ક્ષપકશ્રેણી પર ચઢે છે, તે વિશુદ્ધ માનક કહેવાય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૬