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________________ २५० भगवती सूत्रे 'वडसा णं भने ! एसमए ण पुच्छा' बकुशाः खलु भदन्त ! एकस्मिन् समये कियन्तो भवन्तीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'पडिवजमाणए पहुन्च सिय अस्थि सिय नस्थि' प्रतिपद्यमानकान् - वकुशान प्रतीत्य- प्रतिपद्यमानवकुशापेचय । इत्यर्थः स्यात् - कदाचित् अस्ति - भवति स्यात् कदाचिनास्ति न भवति । 'जइ अस्थि' यदि अस्ति तदा- 'जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्निवा' जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा बकुशा एकस्मिन समये जायन्ते, 'उकोसेणं सयपुहूतं' उत्कर्षेण शतपृथवश्वम् द्विशवादारभ्य नवशतपर्यन्तं वकुशाः एकसमयेन भवन्तीति । 'पुल पडिवन्नए पडुच्च जहन्नेणं कोडिसयहुतं' पूर्वपतिपन्नकान् प्रतीत्य जघन्येन कोटिशतपृथक्त्वम् द्विकोटिशवादारभ्य नवकोटिशतपर्यन्तम् 'उकोसेग वि कोडि सयपुहुत उत्कर्षेणाऽपि कोटिशतपृथक्त्वम् एतत्परिमिता बकुशाः एकदा भवन्तिीति । ' एवं पडि सेवणा 'वसाणं भंते पुच्छा' हे भदन्त ! एक समय में कितने बकुश होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोपमा ! पडिवज्जमाणए पटुच्च सिय अस्थि सिय नस्थि' हे गौतम ? प्रतिपद्यमानक वकुशों की अपेक्षा लेकर वकुश कदाचित होते हैं और कदाचित् नहीं होते हैं 'जइ अस्थि' यदि बकुश होते हैं तो 'जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिमि वा' जघन्य से वे एक सयम में एक अथवा दो अथवा तीन तक होते हैं और 'उक्कोसेणं सगपुन' उत्कृष्ट से एक समय में दोसौ से लेकर नौ सौ तक होते हैं। पुव्यपडिवन्नए पटुच्च जहनेणं कोडिसयपुसं०' तथा पूर्वप्रतिपन बकुशों की अपेक्षा से जघन्य रूप में और उत्कृष्ट रूप में दो सौ करोड से लेकर नौ सौ करोड तक होते हैं । तात्पर्य यही है कि इतने बकुश एक काल में होते हैं । 'एवं पडि सेवणा छे, तो 'जहणेणं एक्को व दो तिन्नि वा' એક અથવા બે અથવા ત્રણ સુધી હોય છે उत्दुष्टथी मे सभयमां असोथी सर्धने नवसेो पहुच्च जहन्नेणं कोंडिसयपुहुत्तं' तथा पूर्व જઘન્યપણાથી અને ઉત્કૃષ્ટપણાથી બે 'बरसाणं भंते ! पुच्छा' हे भगवन् मे समयभां डेंटला अशी डाय छे? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे है - 'गोयमा ! पडिवज्ज माणए पडुच्च प्रिय अस्थि सिय नत्थि' हे गौतम! प्रतिपद्यमान अशोनी अपेक्षाथी अधबार अडुश होय छे, मने अधवार नथी होता. 'जइ अत्थि' ले अडुश होय धन्यथी तेथेो मे सभयभां भने 'उक्कोसेणं सयपुहुत्त ' सुधी होय छे, 'पुब्व पडिवन्नए प्रतिपन्न महुशोनी अपेक्षाथी કરોડથી લઈને નવ કરાડ સુધી होय छे. रेवानु' तात्पर्य मे छे है-भाटा अङ्कुशी मे आजमां होय छे. 'ए' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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