________________ 234 भगवतीसूत्रे परापत्तों भवति, स चात्र परिपूर्णीन गृह्यते अतोऽपार्द्ध पद्लपरावर्तमिति कथितम् / अपार्द्धमिति अपगतममिति परिपूर्णम् भवति तदपि नेत्याह-'देसूणं' इति देशेन भागेन न्यूनमिति देशोनमपार्द्ध पुद्गलपरावर्तमिति कथितमिति / 'एवं जाव णियंठरस' एवं यावत् निर्ग्रन्थस्य यावत्पदेन बकुशपतिसेवनाकुशीलकषायकुशीलानां संग्रहो भवति तथा च बकुशप्रतिसेवनाकुशीलकषायकुशीलनिग्रंथानां जघायतोऽन्तमहर्त्तमन्तरकालो भवति उत्कर्षेण तु अन्तकालं कालतोऽन्तरं भवति तथा क्षेत्रतो देशोनाऽपाद्धपुद्गलपरावर्तपर्यन्तमन्तरं भवतीति भावः / 'रिणायरस पुन छ।' स्नातकस्य खल्लु मदन्त ! कियकालमन्तरं भवतीति पृच्छा-प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नस्थि अंतरं' नारित अन्तरम् स्नातकस्यान्तरं न भवति प्रतिपाताभावादिति / पुलाकत्वादीना प्रदेशों को व्याप्त कर देता है वह क्षेत्र की अपेक्षा एक पुद्गल परावर्त है ऐसा यह पुद्गल परावर्त यहां पूरा का पूरा नहीं लिया गया है किन्तु आधा लिया गया है-और इस आधे में से भी कुछ कम आधा लिया गया है एवं जाव णियंठस्स' इसी प्रकार से विरह काल का कथन बकुश, प्रतिसेवनाकुशील कषाय कुशील एवं निर्ग्रन्थ तक के साधुओं में भी जानना चाहिये / तथा च बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील और निर्ग्रन्थ इनमें जघन्य अन्तर एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है, जो कि क्षेत्र की अपेक्षा अन्तर कुछ कम अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त का है। ___सिणायस्स पुच्छा' हे भदन्त ! स्नातक के कितने काल का अन्तर होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नस्थि अंतरं' કાશના પ્રદેશોને વ્યાપ્ત કરી દે છે. તે ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી એક પુદ્ગલ પરાવર્ત છે, એ આ પુદ્ગલ પરાવર્ત અહીયાં પૂરેપૂરો લીધેલ નથી પરંતુ भी अ५ 72 छ भने साथी 8 4. मधे सीधे छ. 'एव जाव णियंठस्स' मे०४ ते वि२७४१०नु थन मधुश प्रतिसेवना शीa, ४ाय કુશીલ, અને નિગ્રંથ સુધીના સાધુઓમાં પણ સમજવું જોઈએ. તથા બકુશ પ્રતિસેવન કુશીલ કષાય કુશીલ અને નિર્ગમાં જઘન્ય અન્તર એક અન્તર્મુહૂર્તનું છે. અને ઉત્કૃષ્ટ અંતર અનંત કાળનું છે. તથા ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી અંતર કંઈક કમ અપાઈ– અર્ધ પુગલ પરાવર્તનું છે. 'सिणायस्स पुच्छा' में लगवन् २नातने 21 जनु मत२ डाय छ 1 मा प्रशन उत्तरमा प्रभुश्री हे छ -'गोयमा ! नत्थि अंतर' हे गौतम ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : 1