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भगवतीले प्रत्येकं तेषां बकुशादीनां बहुस्थितिकत्वादिति । 'एवं जाव कसायकुसीला' एवं यावत् कषायकुशीलाः यावत्प्रतिसेवनाकुशीलानां कषायकुशीलानां च सर्वाद्धा स्थितिकालो भवति प्रत्येकमेतयोः बहुस्थितिकस्यादिति । 'णियंठा जहा पुलागा' निन्था यथा पुलाकाः पुलाकव देव निर्ग्रन्थानां स्थितिकालो जघन्येन एकसमया. स्मक उत्कर्षण अन्तर्मुहूर्तात्मक इति। 'क्षिणाया जहा ब उसा' स्नातका यथा बकुशाः । बकुशवदेव स्नातकानामपि स्थितिकालः सद्धिारू एव भवतीति २९ ।
त्रिंशत्तममन्तरद्वारमाह-'पुलागस्सणं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होई' पुलाकस्य खलु भदन्त ! कियकालमन्तरं भवति पुलामा पुलाको भून्वा कियता कालेन पुनः काल रहते हैं। क्योंकि बकुश आदिकों की स्थिति का काल सर्दाि है। कारण कि बकुशादिकों में से प्रत्येक बकुश बहु स्थिति वाले होते हैं। 'एवं जाव कसायकुसीला' इसी प्रकार से प्रतिसेवनाकुशल और कषायकुशील इन का भी स्थितिकाल सद्धिा (सब काल) रूप है। क्योंकि इनमें से प्रत्येक बहुत स्थिति वाले होते हैं। 'णियंठा जहा पुलागा' पुलाकों के जैसे निर्ग्रन्थों का भी स्थिति काल जघन्य से एक समय रूप और उस्कृष्ट से अन्तर्मुहर्त रूप होता है। 'सिणाया जहा बउसा' पकुशों के जैसे स्नातकों का भी स्थितिकाल सर्वाद्धारूप ही होता है ॥२९ वें द्वार का कथन समाप्त।
३० वें अन्तरद्वार का कथन 'पुलागस्त णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होई' हे भदन्त ! पुलाक का कितने काल का अन्तर होता है ? अर्थात् पुलाक होकरके फिर બકુશ સઘળા કાળ રહે છે. કેમકે -બકુશ વિગેરેની સ્થિતિને કાળ સર્વોદ્ધા છે. ४॥२८ १४ विगैरेभायी ४२४ म। मस्थितिवाय हाय छे. 'एवं जाव कसायकुसीला' मे प्रमाणे प्रतिसेवनाशीत भने उपायशीन। સ્થિતિકાળ પણ સર્વોદ્ધા છે. કેમકે તેમાંથી દરેક બહુસ્થિતિવાળા હોય છે. "णियंठा जहा पुलोगा' yाना 3थन प्रमाणे नियोनी स्थिति ५g
न्यथी समय ३५ भने उत्कृष्ट थी मतभुडूत ३५ उय छे. 'सिणाया जहा बउसा' मशान थन प्रमाणे सनातनी स्थिति ५५ सद्धिा રૂપ હોય છે. જે ૨૯ માં દ્વારનું કથન સમાપ્ત છે
હવે અન્તર્ધારનું કથન કરવામાં આવે છે.
'पुलागरम णं भंते ! केवइय काल अंतर होइ' भगवन् पुसाने वा કાળનું અંતર હોય છે? અર્થાત મુલાક, પુલાક થઈને તે પછી કેટલા કાળ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬