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________________ भगवतीसूत्रे प्रकृतीरुदीरयति, 'अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुन्नाओ अटुकम्मपगडीओ उदीरेह' अष्ट विधकर्म प्रकृतीरुदीरयन् परिपूर्णा अष्टकर्मप्रकृतीरुदीरयति 'छ उदीरेमाणे आउवेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरे षट्कर्म प्रकृतीरुदीरयन् आयुष्कवेदनीयकर्मप्रकृतिर्वर्जिताः षडेव कर्मप्रकृतीरुदीरयति । 'पडि सेवाकुसीले एवं चेव' प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि एवमेव कुशवदेव प्रति सेवनाकुशलोऽपि सप्तानामषण्णां वा कर्मणामुद्दीरको भवति तत्र सप्त कर्म उदीरयन् आयुकवर्जिताः सप्तकर्मप्रकृतीरुदीरयति अष्टउदीरयन् परिपूर्गा अष्टकर्मप्रकृतीरुदीरयति षड्विध है-तब आयु कर्म को छोडकर अवशिष्ट सातकर्म प्रकृतियों की उदी रणा करता है। 'अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुन्नाओ अट्टकम्मपगडीओ उदीरेड' जब वह आठकर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है तब वह सम्पूर्ण ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। 'छ उदीरेमाणे आडवेय णिज्जबजाओ छकम्पपगडीओ उदीरेड' और जब वह छह कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है-तब वह आयु और वेदनीयकर्म प्रकृतियों को छोड़कर बाकी की छह कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है । 'पडिसेवणाकुसीले एवं चेव' प्रतिसेवनाकुशील भी बकुश की तरह सात आठ अथवा छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । सात कर्मप्रकृतियों का उदीरक होने पर यह आयुकर्म को छोडकर अवशिष्ट ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कर्मप्रकृतियों का उदीरक होता है। आठ कर्म प्रकृतियों का जब यह उदीरक होता है। तब यह पूरी आठ की आठ २०० 1 ક્રમ પ્રકૃતિયાના ઉદીરક-ઉદીરણા કરવાવાળે! હાય છે, ત્યારે તે આયુકને छोडीने माहीनी सात उम प्रतियोनी उहीरा रे छे. 'अट्ठ उदीरेमाणे पडि पुन्नाओ अट्ठ कम्मपगडीओ उदीरेइ' क्यारे ते आह हम अमृतियांनी ही २ કરે છે, ત્યારે તે સમ્પૂર્ણ જ્ઞાનાદિ આઠ કમ પ્રકૃતિયેની ઉદીરણા કરે છે. 'छ उदीरेमाणे आउयवेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरेइ' भने न्यारे ते છ ક્રમ પ્રકૃતિયાની ઉદ્દીરણા કરે છે, ત્યારે તે આયુ અને વેદનીય ક્ર अमृतियाने छोडीने माडीनी छ उर्भ अधृतियोनी उहीरा ४२ ४. 'पडि सेवण कुसीले वि एवं चेव' प्रतिसेवना सुशील पशु अङ्कुशना उथन प्रमाणे सात, આઠે અથવા છ કમ પ્રકૃતિયાની ઉદીરણા કરે છે. જ્યારે તે સાત કમ પ્રકૃ તિયેાની ઉદીરણા કરે છે, ત્યારે તે આયુકને છોડીને ખાકીની જ્ઞાનાવરણુ, દનાવરણુ, વેદનીય, મેહનીય, નામ, ગેાત્ર, મને અંતરાય આ સાત ક્રમ પ્રકૃતિયાની ઉદીરણા કરે છે. અને જ્યારે તે માટ કમ પ્રકૃતિયાની ઉદીરણા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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