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________________ - मगयतीसूचे ततः स नववर्ष न्यूनपूर्वकोटिवर्षपर्यन्तमवस्थितपरिणाभो भवतीति देशोना. पनकोडीति कथितम् ॥२०॥ अथैकविंशतितमं बन्धद्वारमाह-'पुलाए णं भंते ! कइ कम्मपगडीओ बंधा' पुलाकर खलु भदन्त ! कतिकर्मप्रकृतीबंध्नाति कतिकर्मपतीनां बन्धः पुलाकस्य भवतीति प्रश्न:, भगनानाह-'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम ! 'आउवजाओ सत्तकम्मपगडीओ बंधइ' आयुजिता सप्तकर्म प्रकृतीबध्नाति पुलाका, पुलाकस्यायुर्वन्धो नास्ति आयुर्वधयोग्याध्यवसायस्यानानां तस्याभावादिति । 'उसे पुच्छा' बकुशः खलु भदन्त ! कति कर्मपकृती बघ्नातीति पृच्छा-प्रश्नः, भगवामाह-'गोयमा' इत्यादि गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तविहबंधए वा सप्तविधपूर्वकोटि तक अवस्थित परिणाम वाला होकर फिर शैलेशी अवस्था में विचरता है । उस शलेशी अवस्था के पहले तक वह अवस्थित परिणाम वाला रहता है । और शैलेशी अवस्था में बर्द्धमान परिणामवाली होता है इसी लिये उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटी ऐसा कहा है ॥२०॥ २१ वां बन्धन द्वार का कथन 'पुलाए णं भंते ! कइ कम्मपगडीओ बंधई' हे भदन्त ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता हैं ? अर्थात् पुलाक के कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्ध होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! आउवज्जाओ सत्त कम्मरगडीओ बंधई' हे गौतम ! पुलाक आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है । क्यों कि पुलाक के आयु का बन्ध नहीं होता हैं। कारण कि उसके आयु बन्ध के योग्य अध्यवसायस्थानों का अभाव रहता है। 'बउसे पुच्छा' हे भदन्त ! वकुश कितनी कर्मपकृतियों का बध करता है ? उत्तर में प्रभुश्री પરિણામવાળા થઈને શૈલેશી અવરથામાં વિચારે છે. અને તે શૈલેશી અવસ્થાની પહેલા સુધી અવસ્થિત પરિણામવાળા રહે છે. અને શૈલેશી અવસ્થામાં વર્ધમાન પરિણામવાળા થાય છે તેથી ઉત્કૃષ્ટ કાળ દેશના પૂર્વ કોટિ કહ્યો છે. ૨૦ હવે બંધદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે. 'पुलाए णं भंते ! कइ कम्मपगडीओ बंधइ' सन् Yaal કર્મ પ્રકૃતિયાને બંધ કરે છે ? અર્થાત પુલાકને કેટલી કર્મ પ્રકૃતિને બંધ सत्य छ ? म प्रश्रना उत्तरमा सुश्री ३ छ-'गोयमा ! आउवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ बंधई' 3 गौतम ! पुस आयु भने छोडीन सात में પ્રકૃતિયોને બંધ કરે છેકેમકે-પુલાકને આયુને બંધ હાત નથી. કારણ કેતેઓને આયુબન્ધ થવાને ગ્ય અધ્યવસાય સ્થાને અભાવ રહે છે. 'बउसेणं पुच्छा' समन् म सी भी प्रतियाना ५४३ ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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