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________________ भगवतीसूत्रे अवट्ठियपरिणामे होज्जा' पुलाकः किएत्कालपर्यन्तमवस्थितपरिणामो भवेत् स्थिरपरिणामः कियत्कलपर्यन्तं भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं सत्तसमया' जघन्येन एकं समयमुत्कर्षेण सप्त समयाः सप्तसमयपर्यन्तमवस्थितपरिणामो भवेत् पुलाक इनि । 'एवं जाव कसायकुपोले' एवं यावत्कषायकुशीलः पुलाकवदेव बकुशपतिसेवनाकुशील. कषायकुशीलानां त्रयाणामपि जघन्येनकं समयम् उत्कर्षतोऽन्तर्मुहूत वर्द्धमानहीयमानपरिणामबत्त्वम् अवस्थितपरिणामत्त्वं तु जघन्येन एकमेव समयम् उत्कर्षण एक समय यहां कहा गया है । और उस्कृष्ट से परिणामों में वर्धमानता अन्तर्मुहर्त तक वस्तु स्वभाव ऐसा ही होने के कारण रहती है। पाद में वह नियम से अन्य परिणामवाला हो जाता है । 'केवइयं कालं अवडिपपरिणामे होज्जा' हे भदन्त ! पुलाक कितने काल तक अब स्थितपरिणामवाला रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं सत्त समया' हे गौतम ! पुलाक जघन्य से एक समय तक और उस्कृष्ट से सात समयतक अवस्थित परिणामों वाला होता है। 'एवं जाव कसायकुसीले वि' इसी प्रकार से वकुश प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील ये साधुजन भी कम से कम एक समयनक और अधिक से अधिक एक अनर्मुहूर्त तक पर्द्धमान परिणामोंवाले और हीयमान परिणामोंवाले होते हैं तथा ये जघन्य से एक समयतक और उत्कृष्ट से सातसमयतक अवस्थित ન્યથી એક સમય ત્યાં કહ્યું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પરિણામમાં વર્ધમાન પણ એક અન્તર્મુહૂર્ત સુધી વસ્તુ-સ્વભાવ એ જ હોવાને કારણે રહે છે, તે પછી नियमयी १३ भान परिणामवाणी थ1य छ, 'केवइय काल अवट्टिय परिणामे होज्जा' 3 भगवन् Yats ४८क्षा सुधी भपस्थित परिणामवाणा २७ छ१ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ है-'गोयमा ! जहन्नेणं एक्क समय उक्कोसेणं सत्त समया' 8 गौतम ! धुत धन्यथा में समय सुधी અવસ્થિત પરિણામેવાળા હેય અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત સમય સુધી અવસ્થિત परिवार हाय छे. छ. 'एव जाव कसायकुखीले वि' मे प्रमाणे બકુશ, પ્રતિસેવના કુશીલ અને કષાયકુશીલ આ સાધુજનો પણ ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે એક અન્તમુહૂર્ત સુધી વર્ષ માન પરિણામેવાળા અને હીયમાન પરિણામેવાળા હોય છે. તથા આ જઘન્યથી એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત સમય સુધી અવસ્થિત પરિણામ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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