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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ घ०८ पञ्चदशं निकर्षद्वारनिरूपणम् १५७ शतद्वयम्, द्वितीयप्रतियोगिपुलाकचरणपर्य परिमाणं नवसहस्राणि अष्टौ च शतानि (९८००) नतः पूर्वभागलब्धं शतद्वयं तत्र मक्षिप्यते, जातानि दशसह. स्त्राणि, ततोऽसौ लोकाकाशमदेशपरिमाणासंख्येयक भागहारलब्धेन शतद्वयेन हीन इत्यसंख्येयमागहीन:, प्रथमपुलाफस्य स्वस्थान सन्निकर्ष इति । 'संखेज्ज भागहीणे वा' संख्येयभागहीनो वा भवेत् । पूरॆक्तकल्पितपर्यायराशेर्दशसहस्रस्य (१००००) उत्कृष्टसंख्यकेन कल्पनया दशकपरिमाणे न भागे हृते लब्धं सहस्रम (१००००) द्वितीय प्रतियोगि पुलाकवरणपर्यवपरिमाणं नव सहस्राणि (९०००) पूर्वभागलब्धं च सहस्रं तत्र प्रक्षिप्पते, जातानि दशसहस्राणि, ततोऽसौ उत्कृष्ट संख्येयभागहारलब्धेन सहस्रेण हीन इति संख्येयभागहीन:, प्रथमपुलाकस्य स्व. झना चाहिये मानलीजिये असंख्यात का प्रमाण ५० है। इनका भाग पूर्वोक्त उत्कृष्ट संयमस्थान पर्यायों में देने से २०० लब्ध आते हैं। इन दो सौ को उत्कृष्ट संयमस्थान पर्यायों में से होन कर देने पर जो ९८०० आते हैं वे असंख्यात भाग हीन हैं। ऐसे असंख्यात भाग से हीन उत्कृष्ट चारित्रपर्यायें एक पुलाक की चारित्र पर्यायों से दूसरे पुलाक की होती हैं। इसी प्रकार 'संखेज्जइ भागहीणे वा' ऐसा जो कहा मया है-सो इसका मतलब ऐसा है मानलीजिये संख्यात का प्रमाण १० हैं। इस १० का भाग पूर्वोक्त उत्कृष्ट संयमस्थानपर्यायों में देने से लब्ध १००० आते हैं इन एक हजार को उत्कृष्ट संयमस्थानपर्यायों में से घटाने पर ९००० बचते हैं-हो ये नौ हजार जैसी एक पुलाक की अपेक्षा दुसरे पुलाक की संख्यातभाग हीन चारित्रपर्यायें हैं। 'संखे. ખ્યાતનું પ્રમાણ ૫૦ પચાસ છે. તેને ભાગ પૂર્વોક્ત ઉત્કૃષ્ટ સંયમ સ્થાનના પર્યામાં દેવાથી ૨૦૦૧ બસે લબ્ધ થાય છે. આ બસને ઉત્કૃષ્ટ સંચમસ્થાન પર્યામાંથી હીન કરવાથી ૯૮૦૦ અઠ્ઠ ગુસે આવે છે, તે અસંખ્યાતભાગ હીન કહેવાય છે એવા અસંખ્યાતભાગેથી હીન ઉત્કૃષ્ટ ચારિત્ર પર્યાયે એક yasी यारित योथी मीn yान डाय छे. मे प्रमाणे 'संखेज्जइ. भाग हीणे वा' मे प्रमाणे रे युछे-ते माप वो छ है-मान સંખ્યાતનું પ્રમાણ ૧૦ દસ છે. આ દસનો ભાગ પૂર્વોક્ત ઉત્કૃષ્ટ સંયમ સ્થાનના પર્યાયમાં દેવાથી લબ્ધ ૧૦૦૦) એક હજાર આવે છે. આ એક હજારને ઉત્કૃષ્ટ સ્થાનના સંયમ પર્યાયોમાંથી ઘટાડવાથી ૯૦૦૦ નવ હજાર બચે છે. તે નવ હજાર એક પુલાકની અપેક્ષાથી બીજા પુલાકના સંખ્યાતHIL डीन यात्रि पर्याय छे. 'संखेज्जगुणहीणे या' के प्रमाणे रे छ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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