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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०६ त्रयोदशं गतिद्वारनिरूपणम् १९९ 'एवं बउसेवि' एवं पुलाकवदेव बकुशोऽपि बकुशविषयेऽपि पुलाकवदेव अविराधनं मतीत्य इन्द्रादिरूपेणोत्पत्तिः न तु अहमिन्द्रतया, विराधनं प्रतीत्य तु अन्यतरस्मिन् उत्पतेति । एवं पडिसेवणाकुसीलेवि' एवं पुलामबदेव प्रतिसेवनाकुशीलो. ऽपि प्रतिसेवनाकुशीलस्यापि पूर्ववदेव व्यवस्थाऽनगन्तव्येति । 'कसायकुसीले. पुच्छा' कषायकुशीला खलु भदन्त ! देवेधूत्पद्यमानः किमिन्द्रतया उत्पधेत सामानिकतयोत्पद्येत प्रायस्त्रिंशत्तयोत्पधेत लोकपालतयोत्पधेत-अहमिन्द्रतया वो. स्पधेतेति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! करदेता है अथवा लब्धि का प्रयोग करता है तो उस स्थिति में यह विराधक होने के कारण अन्यतर भवनपति आदि में उत्पन्न होजाता है। 'एवं बउसे वि' इसी प्रकार का कथन बकुश के विषय में भी जानना चाहिये । अर्थात् यदि यकुश अपने ज्ञान आदिकों की विराधना नहीं करता है तो वह इन्द्रादिरूप से उत्पन्न हो सकता है पर अहमिन्द्ररूप से उत्पन्न नहीं होता है और यदि वह ज्ञानादिकों की विराधना करदेता है तो भवनवासी आदिकों में उत्पन्न हो जाता है। ‘एवं पडिसेवणा कुसीले वि' इसी प्रकार का कथन प्रतिसेवना कुशील के विषय में भी जानना चाहिये । 'कसायकुसीले पुच्छा' हे भदन्त ! कषायकुशील साधु जो कि देवों में उत्पन्न होता है तो क्या वह इन्द्ररूप से उत्पन्न होता है ? अथवा सामानिक देवरूप से उत्पन्न होता है ? अथवा त्रायस्त्रिंशत् देवरूप से उत्पन्न होता है ? अथवा लोकपाल रूप से उत्पन्न होता है ? अथवा अहमिन्द्रदेव रूप से उत्पन्न અથવા લબ્ધિનો પ્રયોગ કરે છે. તે તે સ્થિતિમાં તે વિરાધક થવાના કારણે भीलवनपति विगैरे हेवामा 4-1 2 जय छ, 'एवं बउसे वि' मेन પ્રમાણેનું કથન બકુશના સંબંધમાં પણું જાણવું જોઈએ. અર્થાત્ જે બકુશ પિતાના જ્ઞાન વિગેરેની વિરાધના કરતા નથી. તે તે ઈદ્રાદિ રૂપથી ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. પરંતુ અહમિંદ્રપણાથી ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી. અને જે તે જ્ઞાનાદિની વિરાધના કરે છે, તે ભવનવાસી વિગેરેમાંથી કોઈ પણ એક દેવમાં पन्न य लय छे. 'एवं पडिसेवणाकुसीले वि' से प्रभारीनु थन प्रति. सेवन शासन से मां पर समायु. कमायकुसीले पुच्छा' पन् કષાય કુશીલ સાધુ કે જે દેશમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તે ઈદ્રપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા સામાનિક દેવપણથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા બ્રાયઅિંશત્ દેવપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા લેકપાલપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા અહમિંદ્રપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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