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________________ - - - - - - - - % BE प्रमेयचन्दिका टीका २०२५ उ.६०६ त्रयोदशं गतिद्वारनिरूपणम् १२७ भवतीति । 'सिणाएणं भंते ! कालगए समाणे किं गई गच्छई' स्नातकः खल्ल भदन्त ! कालगतः सन् कां गतिं गच्छतीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिद्धिगई गच्छई' सिद्धिगति गच्छति कालकबलितः स्नातकः ऋते सिद्धशिलां नान्यत्र गच्छतीति सिद्धिगते दाभावेन पुनः प्रश्नो न कृतो गौतमेन । 'पुलाए णं भंते !' पुलाकः खलु भदन्त ! 'देवेसु उवव. जामाणे किं इंदत्ताए उववज्जेजा' देवेधूत्पद्यमानः किमिन्द्रतया उत्रघेत 'सामाणि. यत्ताए उववज्जेज्जा' सामानिकतया उत्पधेत 'तायत्तीसाए उववज्जेज्जा' प्रायस्त्रिंशतया, प्रायस्त्रिंशद्देवरूपेण उत्पद्येत 'लोगालत्ताए उववज्जेज्जा' लोकपालतया उत्प. घेत 'अहमिदत्ताए वा उत्रवज्जेज्ना' अहमिन्द्रतया वो पधेतेति प्रश्नः। भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम । 'अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए उववज्जेज्जा' कालगत होता है तो वह किस गति में जाता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री उनसे कहते हैं 'गोयमा ! सिद्धिगई गच्छह' हे गौतम ! स्नातक कालगत होकर सिद्धिगति को प्राप्त होता है । अर्थात् सिद्धगति को प्राप्त करता है। इसके सिवाय वह अन्य स्थान में नहीं जाता है। सिद्धगति के भेद नहीं होने के कारण पुनः इसके आगे गौतमस्वामी ने प्रश्न नहीं किया है। ___'पुलाए णं भंते ! देवेष्ट उवजमाणे किं इंदत्ताए उवषज्जेज्जा' अब गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछ। है कि हे भडन्त ! देवगति में उत्पन्न होता हुआ वह पुलाक क्या इन्द्र रूप से उत्पन्न होता है ? 'सामाणियत्ताए उववज्जेज्जा' सामानिकरूप से उत्पन्न होता है ? 'तायत्तीसाए उववज्जेज्जा' त्रायस्त्रिंशत् रूप से उत्पन्न होता है ? 'लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा' लोकपाल रूप से उत्पन होता हैं ? 'अह પામે છે, તે તે કઈ ગતિમાં જાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી તેઓને ई छ -'गोयमा! सिद्धिगई गच्छइ' गौतम ! स्नात: स पाभार સિદ્ધિ ગતિને પ્રાપ્ત કરે છે એટલે કે સિદ્ધિ ગતિ પામે છે. આ સિવાય તે અન્ય સ્થાનમાં જતું નથી. સિદ્ધગતિમ ભેદ ન હોવાથી ફરીથી આ સંબંધમાં તેથી વધારે પ્રશ્ન કર્યા નથી. 'पुलाए णं भंते ! देवेसु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववज्जेज्जा' वे श्री ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે છે કે હે ભગવદ્ દેવગતિમાં ઉત્પન્ન થનારા ते ४ शुन्द्रपाथी अ५ थाय छे ? 'सामाणियत्ताए उववज्जेज्जा' सामा Aayeginी पत थाय छ ? 'त्तायत्तीसाए उववज्जेज्जा' व्यायशिताथी GH थाय छ ? 'लोगपालचाए उववज्जेज्जा' साथीहपन्न थाय? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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