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भगवतीस्त्रे समसंह का भवन्ति तदा प्रदेशतः कृतयुग्माः यदा तु विषमसंख्यका स्तदा द्वापरयुग्मा भान्ति-विधान,देशेन तु ये द्विप्रदेशिकाः स्कन्धा स्ते प्रदेशार्थतया एकैकशश्चित्यमानाः द्विपदेशत्वादेव द्वापरयुग्मा भवन्तीति भावः । 'तिप्पएसियाण पुच्छा' त्रिप्रदेशिकाः खलु पृच्छा हे भदन्त ! त्रिप्रदेशिकाः स्कन्धाः प्रदेशार्थतया कि कृतयुग्मा स्योजाः द्वापरयुग्माः कल्योजावेति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'ओघादेसेण सिय कडजुम्मा जाब सिय कलि भोगा' ओघादेशेन स्यात् कृतयुग्माः यावत् स्यात् कल्योजाः, 'विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा तेोगा नो ओगा' व्योज और कल्योज रूप नहीं होते हैं । 'विहाणादेसेणं' परन्तु -एक एक हिप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशरूप से द्वापरयुग्मरूप ही होता है शेष ३ राशिरूप नहीं होता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध जब ममसंख्यावाले होते हैं तब प्रदेशों की अपेक्षा वे कृतयुग्मराशिरूप होते हैं और जप वे विषम संख्या वाले होते हैं तब वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं। जब ये एक एक करके द्विदेशी स्कन्ध प्रदेशरूप से विचारित होते हैं तो दो प्रदेशों वाले होने से ये स्वतन्त्र रूप से द्वापरयुग्मरूप ही होते हैं। ____तिप्पएसियाणं पुच्छा' इस सूत्र पाठ द्वारा श्रीगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसापूछा है-हे भदन्त ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेशरूप से क्या कृतयुग्मरूप होते हैं ? अथवा योजरूप होते हैं ? अथवा द्वापर. युग्मरूप होते हैं ? अथवा कल्योजरूप होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! ओघादे सेणं सिय कडजुम्मा जाब सिय कलिओगा' हे गौतम ! सामान्यरूप से समस्त त्रिपदेशिक स्कन्ध प्रदेशों की विहाणादेसेणं' ५२ तुमे उनी अपेक्षाथी में प्रशवाणे २४५ प्रश५माथी દ્વાપરયુગ્મ રૂપ જ હોય છે. બાકીની ત્રણે રાશિ રૂપ હતા નથી બે પ્રદેશવાળા
છે જ્યારે સમાન સંખ્યાવાળે હોય છે. ત્યારે પ્રદેશોની અપેક્ષાથી તેઓ કતયુમરાશિ રૂપ હોય છે. અને જ્યારે તેઓ વિષમ સંખ્યાવાળા હોય છે. ત્યારે તેઓ દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. જ્યારે તેઓ એક એક કરીને એ દેશવાળે સ્કંધ પ્રદેશપણાથી વિચારવામાં આવે છે, તે બે પ્રદેશેવાળા पाथी मा स्वतंत्रपणाथी दापयुम ३५४ डाय छे. तिप्पएसियाणे पुच्छा' આ સત્રપાઠદ્વારા શ્રીગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવાન ત્રણ પ્રદેશવાળા કંધે પ્રદેશપણથી શું કૃતયુ રૂપ હોય છે? અથવા જ ૩૫ હોય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કલ્યાજ રૂપ હોય છે? આ पानात श्री -'गोयमा ! 'ओघादेसेण सिय कडजम्मा जाब सिय कलिओगा' गीतम! सामान्यपाथी सघणा र प्रदेशमा २४ । प्रहे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫