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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ, सु०९ पुगलानां कृतयुग्मादित्वम् ८५५ ___ अथ प्रदेशार्थतया पृच्छति-परमाणुपोग्गले णं भंते ! परमाणुपुद्गलः खलु भदन्त ! 'पएसध्याए कि कडजुम्मे पुच्छा' प्रदेशार्थतया किं कृतयुग्मः ज्योजः द्वापरयुग्मः कल्योजो वेति पृच्छा प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो कडजुम्मे' नो कृतयुग्मः, 'नो तेओगे नो योजा, 'नो दावरजुम्मे नो द्वापरयुग्म , 'कलिभोगे' किन्तु कल्योजः-कल्योजरूप एव एक प्रदेशमा वर्तमानत्वादिति । 'दुष्पएसिए पुच्छा' द्विपदेशिकः पृच्छा-हे भदन्त ! द्विप्रदेशिका स्कन्धः किं कृतयुग्मरूपः मोजा द्वापरयुग्मः कल्पोजो वा भवतीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयपा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो कड___'परमाणुगोग्गले णं भंते ! परसहपाए किंकडजुम्मे पुच्छा है भदन्त ! एक परमाणु पुद्गल क्या प्रदेशरूप से कृतयुग्मरूप है ? अथवा योजरूप है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप है ? अथवा कल्योजरूप है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेओगे, नो दावरजुम्मे, कलिओगे' हे गौतम । एक पुद्गलपरमाणु प्रदेशरूप से कृतयुग्मरूप नहीं है, योजरूप नहीं है, द्वापरयुग्मरूप नहीं है। किन्तु कल्योजरूप ही है । क्यों कि वह एक प्रदेशमात्र में वर्तमान होता है 'दुपएसिए पुच्छा' इस सूत्रपाठ छारा श्रीगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! जो द्विप्रदेशिकस्कंध हैं, वह क्या कृतयुग्मरूप है ? अथवा योजरूप है ? अथवा द्वापरयुरूप है ? अथवा कल्योजरूप है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं-'गोयमा! બધા સામાન્યપણાથી ચારે પ્રકારવાળા છે, અને વિશેષની અપેક્ષાથી કેવળ કલ્યાજ રૂપ જ છે. કૃતયુગ્મ રૂપ, એજ રૂપ અને દ્વાપરયુગ્મ રૂપ નથી.
_ 'परमाणुगोगाले णं भंते ! पएसट्टयाए कि कड़जुम्मे पुच्छा' है ३५विधान ભગવાન એક પરમાણુ પુદ્ગલ પ્રદેશપણથી કૃતયુગ્મ રૂપ છે? અથવા જ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે? અથવા કાજ રૂપ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रमश्री गीतभस्वाभान है छे 3-'गोयमा ! नो कडजुम्मे नो वेओगे, नो दावर जुम्मे, कलिओगे' 3 गीतम! ४ पुस ५२मा प्रह શપણાથી કૃતયુગ્મ રૂપ નથી. એજ રૂપ નથી દ્વાપરયુગ્મ રૂપ નથી. પરંતુ કલ્યાજ રૂપ છે. કેમકે તે એક પ્રદેશમાત્રમાં વર્તમાન-રહેલ હોય छ. 'दुप्पएसिया पुच्छा' । सूत्र५४ द्वारा श्रीगौतमस्वामी श्रीन सेवा પૂછયું છે કે-હે તારક ભગવદ્ જે બે પ્રદેશવાળા સ્કંધ છે, તે શું કૃતયુગ્મ રૂપ છે? અથવા વ્યાજ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા કાજ ३५ छ। मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री जोतभस्वामीन ४१ छ -'गोयमा!
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫