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भगवतीसूत्रे
कर्कशवदेव पृदुक-गुरुक-लघुकानामपि-अल्पबहुत्वं ज्ञातव्यमिति । 'सीयउसिण-निद-लुक्खाणं जहा बन्नाणं तहेव' शीतोष्णस्निग्धरूक्षाणां स्पानां-पथा -वर्णानां कालादीनामल्पबहुत्वम् तथैव-अल्पबहुत्वमवगन्तव्यमिति ।।मू०८॥ पुद्गलानेव कृतयुग्मादि धर्म निरूपयन्नाह -परमाणुपोग्गले गं' इत्यादि।
मूलम्-परमाणुपोग्गले णं भंते ! दव्बट्रयाए किं कडजुम्मे तेओए दावरजुम्मे कलिओगे? गोयमा! नोकडजुम्मे नो तेओगे. नो दावरजुम्मे कलिओगे । एवं जाव अगंतपएसिए खंधे। परमाणुपोग्गला णं भंते ! दवट्याए किंकडजुम्मा पुच्छा? गोयमा!
ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जावं सिय कलिओगा विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा नो तेओगा नो दावरजुम्मा कलिओगा। एवं जाव अणंतपएप्तिया खंधा। परमाणुपोग्गले णं भंते ! पएसट्रयाए कि कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा! नो कडजुम्मे नो तेओगे नो दावरजुम्मे कलिओगे। दुप्पएसिए पुच्छा ? गोयमा! नो कडजुम्मे नो तेओए दावर जुम्मे नो कलिओगे। तिप्पएसिए पुच्छा गोयमा! नो कडजुम्मे तेओए नोदावरजुम्मे नो कलिओए चउप्पएसिए पुच्छा गोयमा! कडजुम्मे नो तेओए नोदावरजुम्मे नो कलिओगे। पंचपएसिए जहा परमाणुपोग्गले। छप्पएसिए गुण अधिक हैं और 'ते चेव पएसट्टयाए अणंतगु गा' ये ही पुद्गल प्रदेशरूप से पूर्व की अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक हैं। 'पवं मउ गरुष लइयाणवि अप्पा बहुयं' इसी प्रकार से मृदु गुरु एवं लघु सर्शवाले पुद्गलों के अल्प बहुत्व के सम्बन्ध में भी कधन करना चाहिये। सिय उमिण निद्ध लुक्खाणं जहा बन्नाणं तहेव' तथा शीत उगस्निग्ध और रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों का अल्पबहुत्व कालादिक वर्णों के अल्पबहुत्व जैसा जानना चाहिये ।सू०८॥
२ai मन तग! वधारे छे. 'एवं मउय, गरुप लहुयाण वि अप्पाबहुयं' આજ પ્રમાણે મૃદુ-મળ ગુરૂ અને લઘુ, સ્પર્શીવાળા પુદ્ગલેના અલપ म। समयमा ५५ उथन हे स. 'सिय उसिण निद्ध लुक्खाणं जहा वन्नाण तहेब' तथा शत-81, G०-२म, En-यास अने રૂક્ષ-ખરબચડા સ્પર્શવાળા પુગનું અ૫ બહપણુ કાળા વિગેરે વણેના અલ્પબહુપણુના કથન પ્રમાણે સમજી લેવુંસૂ૦ ૮
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫