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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०८ प्र. परमाणुपुद्गलानामल्पबहुत्वम् ८३१ -कर्कशाः, एवं-तथा मृदुक-गुरुक-लघुका-अपि ज्ञातव्याः । 'सिय-उसिण-निद्ध-लुक्खा जहा वन्ना' शीतोष्ण-स्निग्ध- रूक्षाः स्पर्शाः यथा-वर्णाः, यथा कालकादिवर्णान्तर्भावेनाऽऽलापकाः कथिताः तेनैव-प्रकारेण शीतोष्णादिक मन्तर्भाव्यापि-आलापकाः कर्तव्या इति ॥१७॥
अथ प्रकारान्तरेण पुद्गलानेव वर्णयन्नाह-'एएसि णं भंते' इत्यादि,
मूलम्-एएसिणं भंते! परमाणुपोग्गलाणं संखेज्जपए. सियाणं असंखेज्जपएसियाणं अणंतपएसियाण य खंधाणं दव.
याए पएसट्टयाए दबटुपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा। गोयमा! सम्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा दवट्रयाए, परमाणुपोग्गला दवट्टयाए अणंतगुणा, संखेज्जपएसिया खंधा दबट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसिया खंधा दवटयाए असंखेज्जगुणा, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा पएसट्टयाए परमाणुपोग्गला अपसहयाए अणं. तगुणा संखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए संखेज्जगुणा असं. खेज्जपएसिया खंधा पएसटुयाए असंखेज्जगुणा दबटुपएसट्टयाए सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा दबट्टयाए ते चव पएसटयाए अणंतगुणा परमाणुपोग्गला, दव्वटुपएसहयाए अणंतगुणा संखेज्जपएसिया खंधा दवट्टयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पए
स्पर्श के सम्बन्ध में यह पूर्वोक्त रूप से कथन किया गया है, उसी प्रकार से मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के सम्बन्ध में भी कथन करना चाहिये । 'सिय-उसिण-निद्ध लुक्खा जहा वना' तथा जिस प्रकार से वर्ण के सम्बन्ध में आलापक कहा गया है उसी प्रकार से शीत उष्ण और रून स्पर्श के सम्बन्ध में आलापक कहना चाहिये ॥सू०७॥
भने सधु २५शन। सभा ५९५ *थन समो , 'सिय उसिण निद्धलुक्खा जहा वना' २ प्रमाणे व ना समां माता 33 छ, मे प्रमाण શીત ઉણુ અને રૂક્ષ સ્પર્શના સંબંધમાં પણ આલાપકે કહેવા જોઈએ. સૂ૦ શ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫