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भगवतीस्त्रे बाई' इति कथनं शङ्खमाश्रित्य, शङ्खस्य शरीरावगाहनाया उत्कृष्टतो द्वादशयोजनममाणकत्वात् तदुक्तम्-'संखो पुण बारसजोयणाई' शङ्खः पुनदिशयोजनानि भवतीति ४। 'हुंडसंठिया' हुण्डसंस्थिताः हुण्डसंस्थानवन्तो भवन्तीस्पर्थ: ५। 'तिमि लेस्साओ' तिस्रो लेश्या:-कृष्णनीलकापोतिकरूपलेश्याप्रयवन्तो भवन्तीत्यर्थः ६। दृष्टिद्वारे 'सम्मदिट्ठी वि मिच्छादिट्ठी वि' सम्यग्दृष्टपोऽपि मिथ्यादृष्टयोऽपि भवन्ति ते द्वीन्द्रियेभ्य आगत्य पृथिव्यामुस्पित्सवो जीवा इति सम्यग्दृष्टयो भवन्तीति कथनम् सास्वादनसम्यक्त्वापेक्षयेति । इयं च पक्तव्यता औधिकद्वीन्द्रियस्य औधिकपृथिवीकायिकेत्पित्सो भवतीति । एवमेनस्य जघन्यस्थितिष्वपि। 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' नो सम्यमिथ्यादृष्टयः७ ।
और 'उक्कोसेणं बारसजोयणाई उत्कृष्ट से वह १२ योजन प्रमाण होती है। यह उत्कृष्ट अवगाहना शङ्ख को आश्रित करके कही गई है। क्यों कि शव के शरीर की अवगाहना १२ योजन प्रमाण की कही गई है, कहा भी है-संखो पुण बारस जोयणाई ४ 'हुंडसंठिया' संस्थान द्वार में इनके हुंडक संस्थान होता है । 'तिन्नि लेस्साओ' लेश्याछार में ये कृष्ण नील और कापोतिक लेश्यावाले होते हैं। दृष्टिद्वार में ये 'सम्मदिट्ठी वि मिच्छादिट्ठी वि' सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी होते हैं। वे दीन्द्रियों से आकरके पृथिवोकायिको में उत्पन्न होनेवाले जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं ऐसा जो कथन है वह सास्वादन सम्यक्त्व की अपेक्षा से है। यह वक्तव्यता औधिक बीन्द्रिय के जो औधिक पृथिवीकाय में उत्पन्न होने वाले हैं उनमें होती हैं, 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' ज्यातमा माग प्रमाणुनी आने 6ष्टथा 'उक्कोसेणं बारसजायणाई' ते मार
જન પ્રમાણવાળી હોય છે. આ ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના શંખને આશ્રિત કરીને કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે-શંખના શરીરની અવગાહના ૧૨ બાર એજન प्रभानी ही छे. युं ५४४ -'सखापुण बारस जोयणाई ४ 'हुडसठिया' संस्थान द्वारमा तेमाने हु संस्थान डाय छे. 'तिन्नि लेस्थाओ' वेश्याદ્વારમાં તેઓ કૃષ્ણ, નીલ, અને કાપતિક એ ત્રણ લેશ્યાવાળા હોય છે. દષ્ટિवारमा तसा 'सम्मदिदि वि मिच्छादिदि वि सभ्य ट प डायले. सन મિથ્યાદષ્ટિવાળા પણ હોય છે. તેઓ બે ઇંદ્રિયવાળાઓમાંથી આવીને પૃથ્વિકાચિકેમાં ઉત્પન થવાવાળા જ સમ્યગૂ દષ્ટિવાવાળા હોય છે, એવું જે કથન કર્યું છે, તે સાસ્વાદન સમ્યકત્વની અપેક્ષાથી છે. આ કથન ઔધિક બે ઈંદ્રિયના ઔધિક પ્રઢિકાયમાં ઉત્પન્ન થવાના સંબંધમાં થાય છે. 'नो सम्मामिच्छाविट्ठी' या मिश्र टिवाणा डात नथी. 'दो नाणा' ज्ञान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫