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भगवतीस्त्रे कथ्यन्ते । चतुष्कापहारे सति-एकावशेषे कल्योजा नारकाः कथ्यन्ते । तस्मादेवकारणात् कृतयुग्मादिरूपा नारकाः कथयन्ते इति ।
‘एवं जाव वाउकाइयाणं' एवं यावद् वायुकायिकानाम् एवं नैरयिकवदेवपृथिवीकायिकादारभ्य वायुकायिकैकेन्द्रियजीवानामपि कृतयुग्मादिरूपत्व मवगन्तव्यमिति भावः । 'वणस्सइकाइयाणं भंते ! पुच्छा-' वनस्पतिकायिकानां भदन्त ! पृच्छा, हे भदन्त ! वनस्पतिकायिकानां कलियुग्माः प्रज्ञप्ताः ? इति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'वण्णस्सइकाइया. सिय कडजुम्मा'-वनस्पतिकायिकाः स्यात् कृतयुग्माः। 'सिय तेओगा' स्यात्कदाचित्-ज्योजाः 'सिय दावरजुम्मा' स्यात्-कदाचित् द्वापरयुग्माः 'सिय की संख्या से अपहृत होने पर वे अन्त में दो के रूप में भी बच सकते हैं इसलिये वे द्वापर युग्मरूप भी हो सकते हैं और अन्त में चार २ की संख्या से अपहृत होने पर १ संख्या रूप में भी बच सकते हैं अतः वे कल्योजरूप भी हो सकते हैं। 'एवं जाव वाउक्काइयाणं' नैरयिक के जैसे ही पृथिवीकायिक से लेकर वायुकायिक एकेन्द्रिय जीवों में भी कृतयुग्मता आदि चारों युग्मरूपता जाननी चाहिये। ___'वणस्सह काइयाणं भंते ! पुच्छा' इस सूत्र द्वारा श्री गौतमस्वामी! ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! वनस्पतिकायिक जीवों में कितने युग्म कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! वणस्स. काइया सिय कडजुम्मा' वनस्पतिकायिक जीव कदाचित् कृतयुग्मरूप भी होते हैं । 'सिय तेओगा' कदाचितू वे योजरूप भी हो सकते हैं। 'सिय दावरजुम्मा' कदाचित् वे द्वापरयुग्मरूप भी हो सकते हैं । 'सिय कलिओगा' और कदाचित् वे कल्योज रूप भी हो सकते हैं। અપહાર કરતાં છેવટે તેઓ બે પણ થી પણ બચે છે, તેથી તેઓ દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ હોઈ શકે છે. અને છેવટે ચારની સંખ્યાથી અપહાર કરતાં એકની सध्याथी ५६ भये छे. तेथी तमे ४८या ३५ ५५ छ. 'एव जाव वाउ. काइयाण' नयिनी भ. पृथ्वीपिथी मा मीन वायुयि सुधाना એક ઇંદ્રિયવાળા જીવોમાં પણ કૃતયુગ્મપણ રૂપ ચારે યુગ્મપણું સમજવું.
'वणस्नइकाइयाणं भंते ! पुच्छा' मा सूत्रा। श्री गौतभस्वामी प्रभुश्रीन એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન વનસ્પતિકાયવાળા જેમાં કેટલા યુમ કહા છે? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे -'गोयमा! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा' वनस्पतिथि 04 पार कृतयु १३५ ५५ डाय छे. 'सिय तेआगा' 5. वा तयार ३५ ५५ डाय छे. 'निय दावरजुम्मा' ई वार तमे। द्वा५२
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫