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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०८ नैरयिकादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् ७२३ पुरुष भेदात् द्वेषा, सिद्धिर्गतिश्चेत्यष्टौ । एतेषामल्पबहुत्वञ्चैवमर्थतो भवति'नारी १ नर २ नेरइया तिरित्थि ४ सुर ५ देवी ६ सिद्ध ७ तिरिया य ८ । योवअसंखगुणा चउ, संखगुणा पंतगुणा दोन्नि-॥१॥ नार्यो १ नरार नैरयिका स्तिय स्त्रियः४ सुरा५ देव्य ६ सिद्धाः७ स्तियश्चश्वः । स्तोका असंख्यगुणाश्चत्वारः, संख्यगुणा अनन्तगुणौ द्वौ ॥१॥
सर्वस्तोका नार्यः, १ 'असंखगुणा चउ' इति, नारीशब्दादनन्तरं ये चत्वारःनर-नैरयिकतिर्यक् स्त्रीयः सुर-रूपाश्चत्वारस्ते उत्तरोत्तरमसंख्यातगुणा विज्ञेयास्तथाहि ताभ्यो नारीभ्यो नरा असंख्यातगुणाः,२ तेभ्यो नैरयिका असंख्यात. पद में कहे अनुसार जानना चाहिये । आठ गतियां इस प्रकार से है-१ नरकगति तथा तिर्यश्चगति, मनुष्यगति, अमरगति, नरामर तिर्यों में स्त्री पुरुष के भेद से दो दो प्रकार की और सिद्धगतिइस प्रकार ये आठ गतियां हैं। नरकगति में केवल एक नपुंसक वेद ही होता है इसलिये इसका विशिष्ट भेद नहीं किया गया है। तियश्चगति में, नरगति में और देव गति में स्त्रीवेद और पुरुषवेद दोनों होते हैं-इसलिये इन्हें स्त्री पुरुष के भेद से विशिष्ट किया गया है सिद्धों में कोई वेद नहीं हैं, इसलिये उसे भी भेद विशिष्ट नहीं किया गया है। यही बात-नारी, नर, नेरइया' इत्यादि। इस गाथा द्वारा प्रकट की गई है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि मनुष्य स्त्रियां सब से कम हैं। 'असंखेज्जगुणा च'नारी के आगे के चारपद नर नैरयिक तिर्यक् स्त्री और देव ये चार एक एक से असं. रुपातगुणे कहेगये हैं जैसे-नारी-मनुष्य स्त्री की अपेक्षा मनुष्य असंसमान. मा जतियो मा प्रभाये छ. १ १२४॥ति, २ तिय यति. ૩ નરગતિ-મનુષ્યગતિ ૪ અમરગતિ, ૫-૬-૭, નરામર તિર્યંચમાં સ્ત્રીપુરુષના ભેદથી બન્ને પ્રકારની ગતિ, અને સિદ્ધોની ગતિ આ પ્રમાણે આઠ ગતિ છે. નરકગતિમાં કેવળ એક નપુંસક વેદ જ થાય છે. તેથી તેના વિરોષ ભેદ કહેલ નથી તિર્યંચ ગતિમાં, નરગતિમાં, અને દેવગતિમાં સ્ત્રી વેદ અને પુરૂષ વેદ હોય છે. તેથી તેઓને સ્ત્રી પુરૂષના ભેજવાળા કહ્યા છે. સિદ્ધોમાં કઈ વેદ હોતે नथी. तथा ते ५ वाघा नथी. मे पात 'नारी, नर नेरइया' यात ગાથાદ્વારા પ્રગટ કરેલ છે. આ ગાથાથી એ સમઝાવ્યું છે કે-મનુષ્ય અિયો સૌથી माछी डाय छे. 'असंखेज्जगुणा चर' नारी शनी पान यार सेट-नर નરયિક તિર્યંચ સ્ત્રી અને દેવ આ ચારે એક એકથી અસંખ્યાતગણુ કહ્યા છે. જેમકે-નારી-મનુષ્ય સ્ત્રી કરતાં મનુષ્ય અસંખ્યાતગણુ છે. તેનાથી સંખ્યાત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫