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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ३ सू०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि०
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खल्ल यत् तत् प्रतरायतम् तत् द्विविधं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा ओयपए सिए य जुम्म परसिए य' तद्यथा - ओजप्रदेशिक युग्मप्रदेशिक' च । 'तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तत्र खलु यत् तत् ओजपदेशिकम् ' से जहन्नेणं पन्नरसपए सिए पन्नरसपएसोगाढे' तद् जघन्येन पञ्चदशपदेशिक पञ्चपदेशावगाढम् अस्य स्थापना चैत्रम् 'उक्को सेणं अतरसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिक तथैव असंख्यात प्रदेशावगाढमित्यर्थः । 'तत्थ णं जे से जुम्मपरसिए से जहने उपसिए छप्परसोगाढे' तत्र खलु यत् तत् युग्ममदेशिक आ. नं. १६ घनायतम् तत् जघन्येन षट्प्रदेशिक षट्प्रदेशावगाढं च भवतीति
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पन्नत्ते' उनमें जो प्रतरोयत है वह दो प्रकार का कहा गया है 'तं जहा ' जैसे- 'ओपएसिए य जुम्मपएसिए य' ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक 'तत्थ णं जे से ओयवएसिए' इनमें जो ओजप्रदेशिक प्रतर आयत है वह 'जहनेणं पन्नर सपएलिए पन्नर सपएसो गाढे' जघन्य से १५ पंद्रह प्रदेशोवाला होता है और आकाश के १५ पंद्रह प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है। इसका आकार सं. टीका में आ० नं. १६ से दिया है। 'उक्को से अनंत एसिए तहेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में यह अवगाढ होता है। 'तरण' जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए छप्परसोगाढे' तथा जो उनमें युग्मप्रदेशिक घनायत है वह जघन्य से छ प्रदेशों वाला होता है और आकाश के ६ छह प्रदेशों में उसका अवगाह रहता है यह छ प्रदेशी प्रतर के ऊपर दूसरा छ प्रदेशी प्रतर की स्थापना करने से द्वादश
तेमां ने अतरायत संस्थान छे, ते मे प्रकार ह्युं छे. 'तं जहा' ते भा प्रभाछे छे. - 'ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य' मोर प्रदेशवाणु भने युग्भ प्र. शवाणु प्रतर संस्थान ' तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तेमां ने थे! प्रदेशवाणु प्रतर आायत संस्थान छे, ते 'जहणणेणं पन्नरसपएसिए पन्नरसपएसोगाढे' જઘન્યથી ૧૫ ૫દર પ્રદેશાવાળુ હાય છે, અને આકાશના પંદર પ્રદેશમાં તેના અવગાઢ હાય છે, આજપ્રદેશવાળા વ્રતર આયતસસ્થાનના આકાર स. टीअभां भा. न. १६ थी मतावेस छे. 'उक्कोसेणं अणतपपसिए तद्देव' તથા ઉત્કૃષ્ટથી તે અનંત પ્રદેશેાવાળુ હાય છે, અને આકાશના असंख्यात अद्वेशोभां ते अवगाढवाणु होय छे. 'तत्थ णं जे से जुम्मप एसिए से जहन्नेणं छप्परसिए छप्परसोगाढे' तथा तेमां ने युग्मप्रद्वेशीवाणु ઘનાયત સસ્થાન છે, તે જઘન્યથી છ પ્રદેશોવાળુ હાય છે, અને આકાશના
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫