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भगवतीसूत्रे
टीका-'कइविहाणं भंते ! दवा पन्नत्ता' कतिविधानि कतिप्रकारकाणि खलु भदन्त ! द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि-कयितानीति द्रव्यस्वरूपसंख्याविषयका प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा दव्या पनत्ता' द्विविधानि द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि, द्वैविध्यमेव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहां तद्यथा-'जीवदया य अजीवदया य' जीवद्रव्याणि च अनीवद्रव्याणि च 'अजीव दव्या णं भंते ! काविहा पन्नत्ता' अजीवद्रव्याणि खलु भदन्त ! कतिविधानि प्रज्ञाप्तानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम !
पचीसवें शतक का दूसरे उद्देशे का प्रारंभ प्रथम उद्देशे में जीवद्रव्यों के लेश्यादिक का परिमाण कहा। अब इस द्वितीय उद्देशक में द्रव्य प्रकारों के परिमाण आदि का विचार किया जाता है। इसी सम्बन्ध से आये हुवे इस द्वितीय उदेशक का यह 'काविहा णं भंते' इत्यादि प्रथम सूत्र है
टीकार्थ-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कइविहां णं भंते! दब्धा पत्ता' हे भदन्त ! द्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इस प्रकार का यह प्रश्न द्रव्य के स्वरूप संख्या विषयक है। इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा दया पन्नत्ता' द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' वे ये हैं-'जीवघ्या य अजीवदवा ये एक जीव द्रव्य
और दूसरा अजीव द्रव्ध अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अजीय. दब्वाण भंते ! काविहा पन्नत्ता' हे भदन्त ! अजीवद्रव्य कितने प्रकारके
પચ્ચીસમા શતકના બીજા ઉદ્દેશાને પ્રારંભ– પહેલા ઉદેશામાં જીવ દ્રવ્યોની લેશ્યા વિગેરેનું પરિમાણ કહેવામાં આવ્યું છે. હવે આ બીજા ઉદ્દેશામાં દ્રવ્ય પ્રકારના પરિમાણ વિગેરેને વિચાર કરવામાં આવે છે. આ સંબંધથી આવેલા આ બીજા ઉદશાનું “. बिहा गं भंते ! त्या 240 पहे सूत्र छ.
टी -20 सूत्रथा गौतम भी प्रसुन से पूछे छे ४-'कइविहाण भंते ! दव्वा पण्णत्ता' सगवन् द्रव्य डेटा प्रारना ४ामा माया छ ? આ પ્રમાણેને આ પ્રશ્ન સ્વરૂપ સંખ્યાના સંબંધમાં છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु छ -'गोयमा' ३ गौतम ! 'दुविहा दवा पन्नत्ता' द्र०य मे प्रार
छ. 'तं जहा' ते ॥ प्रभा छे.-'जीवदवा य अजीवदव्वा य से જીવ દ્રવ્ય અને બીજુ જીવ દ્રવ્ય.
शथी गौतभाभी प्रभुने मे पूछे छे 8-अजीवदव्वा णं भंते ! कविता पन्नत्ता' हे सन् १०१ ०५ ३८प्रार४ छ ? माना
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫