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प्रमेयरन्द्रिका टीका श०२४ उ.२४ सू०१ सौधर्मदेवोत्पत्तिनिरूपणम् ४७९ याइ' उत्कर्षेणापि त्रीणि गव्यूतानि, नतीयगमे जघन्यत उत्कृष्ट तश्च षड्गव्यूतानि कथितानि, अत्र तु जघन्योत्कृष्टाभ्यां त्रीणि गव्यू नानीति लक्षण्यमिति 'उत्थगमए जह-नेणं गाउयं' चतुर्थगमे जघन्यावगाहना गव्यूतम् 'उकोसेग वि गाध्य' उत्कर्षणाऽपि गव्युतप्रमाणैव चतुर्थगमे पूर्व जघन्येन धनुःपृथकूत्वमवगाहना कथिता उत्कर्षेण तु द्वे गत्यु ते कथिता, अत्र तु जघन्योत्कृष्टाभ्यां गव्यूतमेवोक्तमिति भवत्येव वैलक्षणपमिति । एवमन्यदपि भावनीयम् , 'पच्छिमए सुतिसु गमएम' पश्चिमेषु अन्तिमेषु सप्तमाष्टमन रमेषु विष्वपि गमेषु 'जहन्नेणं विनि गाउमाई' जघन्येन त्रीणि गव्यूतानि 'उकोसेण वि तिनि गाउयाइ' उत्र्षेणापि त्रीणि वि तिन्नि गाउयाई' तृतीय गम में जवन्य और उत्कृष्ट से ३-३ कोश की शरीरावगाहना को प्रमाग है, वहां पर सर्वत्र आदि के दो गमकों में जघन्य अवगाहना का प्रमाण धनुःपृथक्त्व का कहा गया है और उत्कृष्ट से ६ गव्यूत का कहा गया है। परन्तु यहां जयन्य अबगाहना दो आदि के गमकों में गव्यूत प्रमाण कही गई है और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूत (तीन कोश) प्रमाण कही गई है तथा तृतीय गम में वहां पर जघन्य से और उत्कृष्ट से ६ गव्यूत (छकोश) प्रमाण अवगाहना कही गई है। परन्तु यहां पर जघन्य से और उत्कृष्ट से वह ३-३ कोश प्रमाण कही गई है। 'चउत्थगमए जहन्नेणं गाउय' चतुर्थ गमक में जघन्य अवगाहना एक कोश प्रमाण है और 'उक्कोसेण वि गाउयं' उत्कष्ट से भी एक कोश प्रमाण है। चतुर्थ गम में जघन्य अवगाहना पहिले धनुः पृथक्त्व प्रमाण कही गई है और उत्कृष्ट से दो काश प्रमाण कही गई है। परन्तु यहां वह जघन्य और उत्कृष्ट से कोश प्रमाण ही कही गई है। इसी प्रकार से और भी कथन भावित હનાનું પ્રમાણ છે, પહેલાના બે ગામમાં જઘન્ય અવગાહનાનું પ્રમાણુ બધે ધનુષ પૃથકૃત્વનું કહેવામાં આવ્યું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૬ છ ગાઉનું કહેલ છે. પરંતુ અહિયાં જ ઘન્ય અવગાહના બે વિગેરે ગમેમાં ગબૂત પમ ની કહી છે. અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના ત્રણ ગાઉ પ્રમાણુની કહી છે. તથા ત્રીજા ગમમાં જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી ૬ છ ગભૂત (છ ગાઉ) પ્રમાણની અવગાહના કહેલ છે. પરંતુ અહિયાં જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩-૩ ત્રણ ત્રણ ગાઉ પ્રમાણની ही छे. 'चउत्थगमए जहन्नेणं गाउय' याथा गममा नन्य साहुना से 18 अमानी छ भने 'उक्कोसेण वि गाउयं' थी ५४ मे गाठ પ્રમાણુની છે. ચેથા ગામમાં જઘન્ય અવગાહના પહેલાં ધનુષ પૃથક્વ પ્રમાણવાળી છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી બે ગાઉ પ્રમાણુની કહી છે. એ જ રીતે બીજુ પણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫