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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ ३.२० सु०३ तिर्यग्भ्य: ति जीवोत्पत्यादिकम् २७५ अपणा उक्कोसकालटिइभो जाओ' स एव असंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीय एव आत्मना-स्वयम् उत्कृष्टकालस्थितिको जातः तदा-'सच्चेत्र पढमगम वत्तव्बया' सैव प्रथमगमवक्तव्यता, सप्तमगमो हि प्रथमगनवदेव ज्ञातव्य इत्यर्थः प्रथमगमापेक्षया सप्तमगमे यदंशे भेदो भवति तमेव दर्शयन्नाह-'नवरे' इत्यादि। 'नवरं ठिई जहन्नेणं पुनकोडी' नवरम् केवलं सप्तमगमके स्थितिजघन्येन पूर्वकोटिपमाणा भवति 'उक्कोसेण वि पुषकोडी' उत्कर्षणाऽपि स्थितिः पूर्वकोटि परिमितैव भवति 'सेसं तं चेव' शेष-स्थित्यतिरिक्त तदेव-प्रथम गमोक्तमेव अवगन्तव्यमिति। कायसंवेधमाह-'कालादेसेणं जहन्ने पुचकोडी अंतोमुहु
सातवां गम इस प्रकार से है
'सोचेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिपओ जाओ' जब वह असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उत्कृष्ट कालको स्थिति वाला होकर उत्पन्न होता है तब 'सच्चेव पढमगमवत्तव्वया' इस सप्तमगम के सम्बन्ध में प्रथम गम के जैसी वक्तव्यता कहलेनी चाहिये । परन्तु-प्रथमगम की अपेक्षा सप्तम गम में जिस अंश में भिन्नता है उसे सूत्रकार ने 'नवरं ठिई जहन्नेणं पुत्वकोडी उकोसेण वि पुवकोडी' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया है। इसके द्वारा उन्होंने यह समझाया है कि इस ससम गम में केवल स्थिति जघन्य से पूर्वकोटि प्रमाण होती है और उत्कृष्ट से भी वह पूर्वकोटि प्रमाण ही होती है । 'सेसं तंचेव' इस प्रकार स्थिति होर की भिन्नता के सिवाय और सब द्वारों का कथन प्रथम गम में कहे गये द्वारों के जैसा ही है। कायसंवेध 'कालादेसेणं जहन्नेणं पुब्ध.
હવે સાતમા ગમનું કથન કરવામાં આવે છે – ___'सो चेव अप्पणा उक्कासकालट्रिइओ जाओ' न्यारे भी ५२. ન્દ્રિય તિર્યંચનિવાળે જીવ ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળે થઈને ઉત્પન્ન થાય छे. त्यारे 'सच्वेव पढमगमवतव्वया' । सातमा म सधी पडे ગમમાં જે પ્રમાણે કથન કર્યું છે, તે પ્રમાણેનું કથન સમજી લેવું, પહેલા मम ४२ता सातमा गममा २ शमां या छ, तेने सूत्रारे 'नवर ठिई जहन्नेणं पुषकोडी उक्कोसेण वि पुचकोडी' मा सूत्रा6 द्वारा तयार એ સમજાવ્યું છે કે-આ સાતમા ગમમાં કેવળ સ્થિતિ જઘન્યથી પૂર્વકેટ मानी , मने यी ५४ ते ५ टि प्रभानी छे. 'सेस तं चेव' આ પ્રમાણે સ્થિતિદ્વારના જુદાપણું શિવાય બીજા સઘળા દ્વારનું કથન પહેલા अममा बारा॥ ४थन प्रमाणे छ, यसवय 'कालादेसेज जहण्मेण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫