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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २० सू०२ शर्कराप्रभायानारकोत्पत्यादिकम् २३३ यतिर्यग्योनिकेषु उत्पत्तम् 'से णं भंते! केवइयकाल डिइरस उत्रवज्जेज्जा' स खलु मदन्त ! कियत्काल स्थिति के प्रत्यद्येतेति प्रश्नः । भगवानाह - ' एवं जहा ' इत्यादि, ' एवं जहा रयणपभाए णव गमगा तहेब सक्करप्पभाए वि' एवं यथा रत्नप्रभायां नव गमका तथैव शर्कराममायामपि रत्नप्रभासंबन्धि नारकमाश्रित्य यथा प्रथमादारभ्य नवमाता नवगमकाः कथिता स्तेनैव प्रकारेण शर्कराप्रमानारकमाश्रित्यापि प्रथमादारभ्य नवमगमान्ता नत्र गमका अपि वक्तव्या स्तथाहि कियत्काल स्थितिनेरइए णं भंते !' इत्यादि सूत्र २ ।
टीकार्थ- हे भदन्त ! शर्कराप्रभा पृथिवीका नैरथिक जो पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है । 'से णं भंते! केवइयकालट्ठिएस उववज्जेज्जा' हे भदन्त ! वह कितने काल की स्थितिवाले प्रचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'एवं जहा रयणप्पभाए जव गमना तहेब सक्करपभाए वि' दे गौतम ! जिस प्रकार से रत्नप्रभा संबन्धी नारक को आश्रित करके प्रथम गमक से लेकर नौवें गमतक नौ गमक कहे गये हैं उसी प्रकार से शर्करा प्रभा के नारक को लेकर भी प्रथम गम से लेकर नौवें गम तक नौ गमक कहना चाहिए। जो इस प्रकार से हैं 'जब गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछाहे भदन्त ! शर्कराप्रभा पृथिवी का नैरयिक जो पंचेन्द्रियतिर्यथों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यश्वों
भाटे जीभ सूत्रनु उथन उरे छे. 'सक्करप्पभापुढवीनेरइए णं भते ! त्याहि
ટીકા-હે ભગવન્ શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીના નૈયિકા કે જેઓ પંચેન્દ્રિય तियं ययोनिअमां उत्यन्न थवाने येोग्य छे. 'से णं भ'ते ! केवश्यकालट्ठिएसु उववज्जेज्जा' हे भगवन् ते डेंटला अजनी स्थितिवजा यथेन्द्रिय तिर्ययाभां उत्पन्न थाय छे ? || प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु छे - 'एव जहा रयणप्प भe णत्र गमगा तद्देव सक्करत्पभाए वि' डे गौतम ने रीते रत्नप्रभा પૃથ્વીના નારકોને આશ્રિત કરીને પહેલા ગમથી આરભીને નવ ગમે કથા છે, એજ રીતે શકરાપ્રભાના નારકે.ના સંબંધમાં પણ પહેલા ગમથી આર. ભીને નવમા ગમ સુધીના નવ ગમેા કહેવા જોઇએ. જે આ પ્રમાણે છે-જ્યારે ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવુ. પૂછ્યું કે હે ભગવન શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકા કે જેઓ પંચેન્દ્રિય તિય ચામાં ઉત્પન્ન થવાને ચેગ્ય છે તેઓ કેટલા ઢાળની સ્થિતિવાળા પચેન્દ્રિય તિય ચામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? ! પ્રશ્નના
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫