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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६३९ उत्पद्यन्ते, गो असन्निमणुस्से हितो उपवनंति' नो असंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पधन्ते' 'जहा असुरकुमारारेसु उववज्जमाणस्स जाव' यथा असुरकुमारेपृत्पद्यमानस्य' एतद् विषय प्रश्नोत्तरादिकम् असुरकुमारेषूत्पद्यमानस्य जीवस्य इव द्रष्टव्यम् । कियत्पर्यन्तमित्याह-जाव' यावत् असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्यमूत्रमायाति तावदित्यर्थः, तथाहि-यदि संज्ञिमनुष्येभ्य उत्पधन्ते तदा कि संख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य उत्पधन्ते अथवा असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्व उत्पद्यन्ते, गौतम ! संख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते तथा-असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञिमनुष्येभ्योऽपि उत्पद्यन्ते एतदेव सर्वम्-'जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्त जाव' इत्यादि प्रकरणे कथि. तमिति । 'असंखेज्जवासाउयसन्निम गुस्से भंते' असंख्यातवर्षायुकसंज्ञिमनुष्य : खलु भदन्त ! जे भविए णागकुमारेसु उवज्जित्तए' यो भन्यो-योग्यः नागकुमारेषूत्पत्तुम् , 'से णं भंते !' स खलु भदन्त ! 'केवइयकालहिइएसु उपवाज' कियत्कालस्थितिकेषु नागकुमारेषूत्पद्यते इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' सन्निमणुस्से हितो उववज्जति' हे गौतम ! वे वहां नागकुमारावास में संज्ञी मनुष्यों से आकरके ही उत्पन्न होते हैं 'गो असनि मणुस्से हितो.' असंज्ञीमनुष्यों से आकरके उत्पन्न नहीं होते हैं। 'जहा असुरकुमारेसु उववजमाणस जाव' इस प्रकार से जैसी इस प्रकरण में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य मनुष्यों की वक्तव्यता कही गई है उसी प्रकार की वक्तव्यता यहां पर कहनी चाहिये, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'असंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेणं भंते ! 'हे भदन्त ! जो संज्ञी मनुष्य असंख्यातवर्ष की आयुवाला है और वह नागकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है तो वह ‘से ण भंते ! केवइयकाल' कितनेकालकी स्थिति वाले તેઓ સંસી મનુષ્યોમાંથી આવીને ત્યાં નાગકુમારાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'णो असन्नि०' असशी मनुष्यामाया मावीन 4-1 थता नथी. 'जहा असुरकुमारेसु उववजमाणस्स जोव' मा प्राथी २६ी रीते २मा प्रमा અસુરકુમારોમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય મનુષ્યના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ રીતેનું કથન અહિયાં પણ કહેવું જોઈએ. वे गौतमस्वामी प्रसुन मे पूछे छे है-'असं खेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! सन् २ सशी मनुष्य मसच्यात नी मायुष्यवाणी छ, सतनागभाभा पन थपाने योग्य छे. तो त-से ण भंते ! केवइयकाल' 20 जनी स्थितिवा नागाभारा ५. थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु । छेउ-जहन्नण दसवाससहस्सद्रिइएस' हे गौतम! मेवात धन्यथा इस २११नी स्थितिवाणा नागभारोमा मन को શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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