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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६२७ अथ तृतीयं गर्म दर्शयति-'सो चेव उककोसकालटिइएसु उत्रचन्नो स एवोत्कृष्टकालस्थितिकेषु उपपन्नः, स एव असख्यातवर्षायुष्कसंक्षिपणे न्द्रियतिर्यग्योनिक एव उत्कृष्टकालस्थितिकनागकुमारेषु देशोनद्विपल्योपमायुष्केषु इत्यर्थः, यदि उत्पन्नो भवेत् तदा-'तस्स वि एस चेव वतन्वया' तस्यापि-पूर्वोक्तजीवस्यापि विषये एषैव-प्रथमगमकोक्तैव वक्तव्यता वक्तव्या भवतीति। 'णवर ठिई जहन्नेणं देसुगाई दो पलिओषमाइं' नवरम्-केवलमेनदेव वैलक्षण्यम् किं तद्वैलक्षण्यं तत्राह-'ठिई जहन्नेणं' इत्यादि, स्थितिघन्येन देशोजे द्वे पल्योपमे जघन्यायुर्देशोन द्विपल्योपममिति कथनं तु अबसणिण्यां सुषमानामक द्वितीयारकस्य कियत्यपि भागेऽतीते असंख्यातवर्षायुष्कं तियश्चमधिकृत्यास्ति, तृतीय गम इस प्रकार से है-'सो चेव उक्कोस कालट्ठिहएसु उववनो' असंख्यात वर्ष की आयुवाला वह संज्ञी पर्याप्त पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च योनिक जीव यदि उस्कृष्ट काल की स्थितिवाले नागकुमारों में अर्थात् कुछ कम दो पल्योपमकी स्थिति वाले नागकुमारो में उत्पन्न होने के योग्य है और वह इस प्रकार से वहां उत्पन्न हो जाता है तो इस सम्बन्ध में भी 'एस चेव वत्तव्वया' यही पूर्वोक्त वक्तव्यता समग्र रूप में यहां कहनी चाहिये, परन्तु इस वक्तव्यता में और पूर्वोक्त वक्तव्यता मेंप्रथम गम सम्बन्धी वक्तव्यता में जो अन्तर है वह 'ठिई जहन्ने ' इत्यादि के अनुसार है, अर्थात् यहां तृतीय गम में स्थितिद्वार में जघन्य से स्थिति देशोन दो पल्योपम की है, इस प्रकार से जो यहां जघन्य आयु का कथन हुआ है वह अवसर्पिणी काल के द्वितीय सुषमा नामके आरेके कितनेक भाग व्यतीत हो जाने पर असंख्यात घर्ष की वे त्रीत मनु ३५- ४२वामां आवे छे-'सो चेव उक्कोसकालदिइण्सु उववन्नो' असच्यात पनी मायुयायो त ससी पास पश्यन्द्रिय તિર્યંચ નિવાબે જીવ જે ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક કમ બે પાપમની સ્થિતિવાળા નાગકુમારમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય છે, અને તે मा रीते त्या उत्पन्न - Mय छ, तो ते मा ५९५ 'एस चेव वत्तव्वया' આ પહેલા ગમનું સમગ્ર કથન અહિયાં કહેવું પરંતુ આ કથનમાં અને पता मना थनमा- Y या छ, त ठिई जहन्नेणं' त्याल કથન અનુસાર છે. અર્થાત્ અહિયાં આ ત્રીજા ગામમાં સ્થિતિ દ્વારમાં જ ન્યથી સ્થિતિ દેશના બે પપમની છે, આ પ્રકારે અહિયાં જે જઘન્ય આયનું કથન કરેલ છે, તે અવસર્પિણી કાળના બીજા સુષમા નામના આરાને કેટલોક ભાગ વીતિ ગયા પછી અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા તિયાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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