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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६२१ भविए नागकुमारेषु उपज्जित्तए' यो भन्यो नागकुमारेषूत्पत्तुम् ‘से णं भंते ! केवइयकालट्टिइएसु उपवज्जेज्जा' स खलु भदन्त ! कियत्कालस्थिति केषु नाग कुमारपूत्पद्यतेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि. हे गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहसटिइएसु' जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थिति केषु असुरकुमारावासेपूरपद्यते इत्यग्रिमेण संबन्धः, तथा-'उको सेणं देमण दुपलिओवमटिइएसु उववज्जेजा' उत्कर्षेण देशोनद्विपल्योपमस्थिति के पुत्पधेत । देशोन द्विपल्योपमेति कथनम् औदीच्यनागकुमारनिकायाऽपेक्षया,यत औदिच्यनागकुमारनिकाये देशोने द्वे पल्यो. पमे उत्कर्षेण आयु भवतीति तदुक्तम्-'दाहिणदिवडपलियं दो देमूणुत्तरिल्लाणं' दाक्षिणात्यानां सामेकं पल्पम् औत्तराणां द्वे पल्योपमे देशोने इति ।१। 'ते णं भंते !' हे भदन्त ! असंख्यात वर्ष की आयुगले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च 'जे भविए नागकुमारेलु उवधज्जित्तए' जो नागकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य हैं 'से णं भंते' केवइयकालटिइएसु उववज्जेज्जा' वे कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं दसवाससहस्स०' जघन्य से वे दश हजार वर्ष की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं और उत्कृष्ट से कुछ कम दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं। यहां जो कुछ कम दो पल्योपम' ऐसा कहा है वह उत्तर के नागकुमारनिकायों की अपेक्षा से कहा है, क्योंकि उत्तर दिशा के नागकुमार निकाय में कुछ कम दो पल्योपम की स्थिति उत्कृष्ट से होती है, कहा भी है-'दाहिणदिवडपलियं दोदेसूणुत्तरिल्लाणं' दाक्षि. णात्यों की डेढ पल्योपम की स्थिति है और उत्तर दिशा के निकायों अभ्यात षनी मायुष्य वाणे। सशी पयन्द्रिय तिय"य 'जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए'२ नागभारामा उत्पन्न वान यो२५ छ, 'से णं भंते ! केवइयकालट्ठिइएसु उपवज्जेजा' ते ८क्षा नी स्थितिवा नागमारामा उत्पन्न थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु है-'गोयमा ! गौतम! 'जहन्नेणं दसवाससहस्स.' न्यथी इस सं२ पनी स्थिति नागभा. માં ઉત્પન્ન થાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઇક એ છ બે પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા નાગકુમારામાં ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં જે કંઈક ઓછા બે પલ્યોપમ એવું કહેલ છે તે ઉત્તરના નાગકુમારનિકાને ઉદ્દેશીને કહ્યું છે, કેમકે- ઉત્તર દિશાના નાગકુમાર નિકાચોમાં ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક ઓછી બે પલ્યોપમની સ્થિતિ હોય છે. यु. ५ छ है 'दाहिणदिवड्ढपलियं दो देसूणुत्तरिल्लाणं' दक्षिण निशाना नाश કુમારની સ્થિતિ દેઢ પલ્યોપમની છે. અને ઉત્તર દિશાના નિકાલની સ્થિતિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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