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________________ भगवतीसूत्रे दर्शयति-'सो चेव अप्पणा इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालहिइओ जाओ' स एव असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्यजीवः एव स्वयमात्मना जघन्यकालस्थितिको यदि अमुरकुमारेषु समुत्पत्तियोग्यो भवेत्तदा स किरकालस्थितिकासुरकुमारेधूत्पतेति प्रश्नः। उत्तरमाह-उस्स वि जहन्नकालटिश्यतिरिक्वजोणियसरिसा तिन्निगमगा भाणियन्या' तस्याऽपि स्वयं जयन्यकालस्थितिकस्याऽसुरकुमारेषु समुत्पत्ति योग्यस्यापि जघन्यकालस्थितिक तर्यग्योनिकसहशास्त्रयोगशः भणितव्याः, जघन्य. कालस्थितिकऽसंख्यातवर्षायुष्कतिर्यग्मोनिकवदेव उत्पादपरिमाणसंहननसंस्थानलेश्यादृष्टिसमुद्घातज्ञानाज्ञानयोगोपयोगस्थित्य तुबन्धकायसंवेधादिकं सर्वमपि ___ मध्यम गमत्रिकके अन्तर्गत तीन '४-५-६' गमोंको दिखलाते हैं, उनमेंका प्रथम गम अर्थात् आदिसे चौथा गम ऐसा है-'सो चेव अप्पणा जहन्नकालटिइमो जाओ०' वही असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी मनुष्य जीव जो कि जघन्यकाल की स्थिति को लेकर उत्पन्न हुआ है वह यदि असुरकुमारों में उत्पत्ति के योग्य है तो वह कितने काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है तो इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'तस्स वि जहन्नकालहिय तिरिक्खजोणियसरिसा तिन्नि गमगा भाणियचा' हे गौतम! इस जघन्य काल की स्थिति वाले जीव के जो कि असुरकुमारों में उत्पत्ति के योग्य है उसके जघन्य काल की स्थिति वाले असंख्यात वर्षायुष्क तिर्यग्योनिक के जैसे तीन गम कहना चाहिये-अर्थात् जिस प्रकार से जघन्य काल की स्थिति वाले तिर्यग्योनिक जीव के उत्पाद, परिमाण, संहनन, संस्थान, १५ आममा मत मी म मा शत छ-'सोचेव अप्पणा जहपणकालदिइओ जाओ' असभ्यात वषनी आयुष्यवाणी 22 जी मनुष्य જીવ કે જે જઘન્ય કાળની સ્થિતિથી ઉત્પન્ન થયો હોય છે. એ જીવ જે. જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા અસુર કુમારમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્યા હોય તે તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારોમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु छ है-'तस्स वि जहन्नकालठुिइय तिरिक्खजोणियसरिसा विन्नि गमगा भाणियत्वा' 8 गौतम ! २५ ४५न्य जनी स्थिति बने કે જે જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય છે, તે સંબંધમાં જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા તિર્યચનિક પ્રમાણેના ત્રણ ગમે કહી લેવા. અર્થાત્ જે રીતે જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા તિર્યંચ નિવાળા જીવને ઉત્પાત, પરિમાણ, સંહનન, સંસ્થાન, લેશ્યા, દષ્ટિ, વિગેરે દ્વારાના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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