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________________ प्रन्द्रिका टीका श०२४ उ. २ ०१ असुरकुमार देव स्योत्पादादिकम् ५६३ कियन्त उत्पवन्ते सुरकुमारावासे इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'ateमा' हे गौतम! 'जहन्ने एक्कोवा दो वा तिन्नि वा' जघन्येन एको वाद बायो वा 'उक्को सेणं संखेज्ना उबवज्र्ज्जति' उत्कर्षेण संख्याता इत्येवोक न तु असंख्याता इति (२) । 'वयरोसमनारायसंघयणी' वज्रऋषमनाराचसहनन वान् भवति सोऽसंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञि पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकः, यतोहि अस ख्यातवर्षायुषां तदेव संहननं भवतीति (३) । 'ओगाइणा जहन्नेणं धणुपुहुत' अब ख्यातवर्षायुष्कसंज्ञि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां शरीरावगाहना जघन्येन धनुः पथ क्त्वम् - द्विधनुरारभ्य नत्र धनुःपर्यन्तम् 'उक्कोसेणं छ गाउयाई' उत्कर्षेण षड्गष्य आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यश्व एक समय में वहां असुरकुमारावास मे कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं- 'गोयमा १ हे गौतम! 'जहनेणं एक्को वा दो वा तिनि या' जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन और 'उक्कोसेणं संखेज्जा उवचज्जंति' उत्कृष्ठ से संख्यात उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यश्च असख्यात नहीं कहे गये है किन्तु संख्यात ही कहे गये हैं इसलिये यहाँ पर भी संख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहा गया है (२) । इनके वज्रऋष भनाराच संहनन होता है। अर्थात् जो असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव है उसको यही संहनन होता है (३) 'ओगाहणा जहन्नेर्ण धणुपुहुत्त' इनके शरीर की ऊंचाई रूप अवगाहना जघन्य से धनुषपृथवत्व है, दो धनुष से लेकर नौ धनुष तक की अथ પચેન્દ્રિય તિયચ એવા તે જીવે એક સમયમાં ત્યાં અસુકુમારાવાસામાં हैटला उत्पन्न थाय छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलु तेथेने हे छे !-'गोयमा !' गौतम ! 'जगेण एको वा दो वा तिन्नि वा' धन्यथी ये अथवा मे अथवा त्रायु भने 'उकोसेणं संखेज्जा उत्रवज्जंति' ष्टथी सध्यात उत्पन्न याय છે. અસખ્યાત વષૅ ની આયુષ્ય વાળા તિય ચા અસંખ્યાત કહેલા નથી.--પરંતુ સખ્યાત જ કહેલ છે. -તેથી અહિયાં પણ સંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે, તેમ કહેવામાં આવેલ છે. (૨) તેઓને વજ્ર ઋષભ નારાય સહનન હાય છે. અર્થાત્ અસ ંખ્યાત વર્ષની આયુંષ્યવાળા સન્ની પાંચેન્દ્રિય તિય`ચ ચેાનિવાળા छवने खेन संहुतन होय छे (3) 'ओगाणा जहन्नेणं धणुहपुहुतं उकोसेणं छ गाउयाई” तेथेोना शरीरनी ऊँचाई ३५ अवगाहना धन्यथो धनुष पृथ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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