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भगवतीसो भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्सहि. इएम' जघन्येन दशवर्ष सहस्रस्थिति केषु नैरयि के पूत्पधेत, 'उक्कोसेणं सागरोरमद्विइएमु उववज्जेज्जा' उत्कर्षेण सागरोपमस्थिति के षु नैरयिकेपूत्पधेतेत्युत्तरम् । 'ते णं भंते। जीवा एगसमएणं' ते-उत्कृष्ट कालस्थितिकपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्क संक्षिपश्चन्द्रियतिर्यग्नोनिकाः खलु जीवा' रत्नप्रभानरकादौ एकस्मिन् समये कियात उत्पद्यन्ते इति प्रश्न । उत्तरमाह-'अवसेसो परिमाणादीओ भावादेस पज्जवसाणो एएसिं चेत्र पढमगमओ णेयव्यो' अवशेषः परिमाणादिको भावादे. शर्यवसानः एतेषामेव प्रथमगमो नेतव्यः, तत्र परिमाणादारभ्य भवादेशपर्यन्तः धाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैंगोयमा ! जहन्नेणं दसवामवह.' हे गौतम ! वह जीव जघन्य से जिनकी स्थिति दश हजार वर्ष की है ऐसे उन नरकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से जिनकी स्थिति 'सागरोपम की है उन नारकों में उत्पन्न होता है। अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं०' हे भदन्त ! वे उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव रत्नप्रभा नरक
आदि में एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अवसेसो परिमाणादीमो भवादेसपज्जवसाणो एएसि वेव पढमगमओ यन्यो हे गौतम! भवादेश पर्यन्त समस्त परिमाण आदि सम्बन्धी कथन इस विषय का प्रथम गम के अनुसार यहां कह लेना चाहिये-जैसे-वे जीव जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन तक और
मी पन थाय छ ? ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ-'गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई' गौतम ७१ धन्यथा मनी स्थिति इस હજાર વર્ષની હોય એવા નારકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી જેઓની स्थिति 'सागरो' में सागरापभनी छ. मेवात नारीमा लत्पन्न थाय छे.
व गौतमस्वामी शथी प्रभुने मे पूछे छे ४-'से ण भंते ! जीवा | एग समएणं' उमगवन् उत्कृष्ट जनी स्थिति पर्यात भज्यात पनी આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિયચ નિવાબે જીવ રત્નપ્રભા વિગેરે નરકેમાં એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छ -'अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो एएसिं चेव पढमगमओ णेयव्वो' गौतम ! माहेशना ४थन सुधी परिभाए विगेरे समधी सणु કથન પહેલા ગામમાં કહ્યા પ્રમાણે અહિયાં કહી લેવું, જેમ કે તે છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪