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________________ ३८४ भगवतील भागहिएषु' पल्योपमस्यासंख्येयभागस्थिति केषु नैरयिकेषु 'उज्जेज्जा' उत्पधेत, हे भदन्त ! यः खलु पर्यातासंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिरंग्योनिको जीवो रत्नसमानरकपृथिवीनारकेषु समुत्पत्तियोग्यो विद्यते स जघन्यतो दशसहस्रवर्षस्थितिकनारकेषु उत्पद्यते उत्कृष्टतः पल्पोपमस्यासंख्यातमागस्थितिकनारकेषु समु. त्पति लभते इत्युत्तरम् । 'ते ण भंते ! जीया' ते खलु भदन्त ! जीवाः ये खलु रत्नपभापृथवीसम्बन्धिनरकेषु उत्पत्तियोग्य विधाते ते 'एगसमए केवइया उववज्जति' एकसमये कियन्त उत्पद्यन्ते ? उत्तरमाह-'जघन्येन एको बा, द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टता संख्याता वा असंख्शता का इत्युतरम्, एतदेव दर्शयति'सेसं तं चेव इति प्रकरणेन, 'सेसं तं चे' शेषम्-उत्पादव्यतिरिक्तम् असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है अर्थात् जो पर्याप्त असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव रत्नप्रभा पृथिवी के नारकों में उत्पत्ति के योन्य है वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरपिकों में और उत्कृष्ट से पल्यापम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिघाले नरयिकों में उत्पन्न होता है, अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवड्या उवधज्जति 'हे भदमत ! जो जीव रत्नप्रभा सम्बन्धी नारकों में उत्पत्तियोग्य है ऐसे वे जीव एक सयय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! ऐसें वे जीव जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन तक उत्पन्न होते हैं और उत्कृष्ट से संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं, पही यात सूत्रकारने 'सेसं तं चेव' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रगट की है-- પર્યાપ્ત અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિયનિક જે જીવ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકમાં ઉત્પન્ન થવાને એગ્ય બન્યા હોય છે. તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા નરયિકમાં અને ઉત્કૃષ્ટથી પલ્યોપમના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ સ્થિતિને વાળા નૈરચિકેમાં ઉત્પન્ન થાય છે. शथी गौतमास्वामी प्रभुने मे पूछे छे -'ते ण भते ! जीवा ! एगसमयेणं केवइया उववज्जंति' सपन् २ला पृथ्वीना नामा २ જવ ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય છે, એવા છે જે એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ! રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકોમાં ઉત્પન થવાને યોગ્ય એવા તે જ જઘન્યથી એક સમયમાં એક અથવા બે અથવા ત્રણ સુધી ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી सभ्यात मा मध्यात ५न थाय छे. ४ वात सूत्ररे 'सेसं तं देव' मा सूत्रा द्वारा प्रगट ४२६ छे. मामा तमामे से ४ह्य छ :-म। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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