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________________ भगवतीस्त्रे पृथिवीकायिकस्योपपातं पदर्य अकायिकस्य तदर्शयितुमाह-'आउकाइ. एणं' इत्यादि मूलम्-'आउक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणपप्पभाए सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववजित्तए. सेसं जहा पुढवीकाइयस्त जाव से तेणट्रेणं० एवं पढमदोच्चाणं अंतरा समोहए जाव ईसीपभाराए उववाएयव्वो एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जाव ईसी. पब्भाराए उववाएयवो आउकाइयत्ताए। आउकाइए णं भंते! सोहम्मीसाणाणं सणकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए समोहणित्ताजेभविएइमीसेरयणप्पभाए पुढवीए घणोदहि-घणोदहिवलएसु आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए० सेसंतं चेव,एवं एएहिं चेव अंतरा समोहओ जाव अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदहिघणोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववाएयबो, एवं जाव अणुत्तरविमाणाणं ई सीपम्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहे. में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये अर्थात् यहां देशतः और सर्वतः मरणसमुद्घात करके यावत् अधः सप्तमी पृथिवी में पृथिवीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य हुआ पृथिवीकायिक जीव पहिले वहां उत्पन्न हो जाता है और बाद में आहार ग्रहण करता है तथा पहिले वह आहार ग्रहण कर लेता है और बाद में वहां उत्पन्न हो जाता है इस प्रकार दोनों पक्ष मान्य हुए हैं ।सू० १॥ પણથી ઉત્પન્ન થવાને યુગ્ય થયેલ કૃત્રિકાયિક જીવ પહેલાં ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને તે પછી આહાર ગ્રહણ કરે છે, તથા પહેલાં તે આહાર ગ્રહણ કરી લે છે, અને તે પછી તે ત્યાં ઉત્પન થઈ જાય છે. આ રીતના બન્ને પક્ષે માન્ય થયેલા છે. સૂત્ર ના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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