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________________ भगवती फलवान् वृक्षः 'धायई' धातकी-वृक्षविशेषः 'पियाल' प्रियालकः 'पूतिर्णिब' पूतिनिम्बः 'सण्इय' सहकः 'पासिय' पासिको वृक्षविशेषः 'सीसव' शिंशपः 'असण' अतसी 'पुन्नाग' पुन्नागो वृक्षविशेषः, 'नागरुक्ख' नागवृक्षः 'सीवन्त्री श्रीपर्णी 'असोगाणं' अशोकानाम् निम्बादारभ्य अशोकपर्यन्तानामेकास्थिकवन स्पतिजातीयवृक्षाणाम् 'एएसिं' एतेषां निम्बादिवृक्षाणाम् खलु जे जीवा ये जीवाः 'मूलत्ताए वक्कमंति' मूलतया-मूलरूपेण अवक्रामन्ति-समुत्पन्ना भवन्ति 'ते णं जीवा' ते खलु जीवा' ये मूलतया उत्पन्ना भवन्ति 'को. हितो उपवजंति' केभ्यः स्थानेभ्य आगत्य समुत्पत्ति लभन्ते किं नैरयिकेभ्य सिर्यग्भ्यो मनुष्येभ्यो देवेभ्यो वेति प्रश्नः। 'एवं मूलादिया दस उद्देसगाः कायव्वा, निरवसेसं जहा तालवग्गो' एवं मूलादिका दश उद्देशकाः कर्तव्याः निरवशेषं यथा ताळवर्गः येन प्रकारेण तालनामक प्रथमवर्गे मूलादिका दश उदेशकाः प्रदर्शिता स्तथैव इहापि निरवशेषं सर्वेऽपि मूलादिका दश उद्देशकाः पठनीयाः तालवर्गेऽपि शालिकवर्गस्य अतिदेशः शालिकार्गवदेव तालार्गः कथितः शालिको भाषा में खिरनी कहते हैं। इसके फलों में दूध निकलता है। विहेलग नाम बहेडा का है। 'हरितग' नाम हरड का है। धातकी वृक्ष विशेष का नाम है। 'प्रियालक' नाम चिरोजी का है इस के वृक्ष को 'आचार का वृक्ष' कहा जाता है 'असण' अतसी का नाम है। ये जितने भी यहां वृक्ष प्रकट किये गये हैं उनके फलों में एक ही गुठली होती है। इसलिये इन्हें एकास्थिक के प्रकरण में रखा गया है। तालवर्ग में भूलादिक १० उद्देशक प्रकट कर दिये गये हैं सो उसी पद्धति से वे सय उद्देशक यहां पर भी कहना चाहिये तालवर्ग शालिकवर्ग के जैसा कहा गया है तथा शालिकवर्ग की अपेक्षा तालवर्ग में ખિરની-રાયણ કહે છે. તેના ફળમાં દૂધ નીકળે છે, વિહેલગ, બહેડાનું નામ છે, “હરિત હરડેનું નામ છે. ધાતકીએ એક જાતના વૃક્ષ વિશેષનું નામ છે, પ્રિયાલ ચિરજીને કહે છે, તેના વૃક્ષને આચારનું વૃક્ષ એ પ્રમાણે वामां मार छ, 'असण' मससीन नाम छ, महियां ॥२४॥ વૃક્ષ કહ્યા છે, તેના ફળમાં એકજ ગઠલી હોય છે. તેથી તેઓને એકાસ્થિક પ્રકરણમાં રાખેલા છે. તાલ વર્ગ માં મૂળ વિગેરે ૧૦ દસ ઉદ્દેશાઓ કહેલ છે એજ પદ્ધતિથી તે બધા જ ઉદ્દેશાઓ અહિયાં પણ સમજવા તાલવર્ગ શાલીવર્ગ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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