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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व.३ औषधिवनस्पतिअतस्यादिगतजीवनि० २५३ टीका- 'अह भंते ।' अथ हे भदन्त ! 'अयसी कुसुंभकोदवकंगूरालक तुवरी कोससणसरिसबमूलगबीयाणं' अतसीकुसुम्भकोद्रव करानालकतुवरी कोदसशणसर्षपमूलकबीजानाम् एतन्नामधेयवनस्पतिविशेषाणां चातुर्मासिक-हैमन्तिकानाम्'एएसि णं जीवा' एतेषामुपरि निर्दिष्टानां खलु सम्बन्धिनो ये जीवा 'मूलताए वकमंति' मूलतया-मूलरूपेण अवक्रामन्ति-समुत्पद्यन्ते 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जोवा अतसीमभृतिवनस्पतिविशेषाणां मलतया समु. त्पधमानाः 'कओहितो उपवज्जति' कुन उत्पद्यन्ते केभ्यः स्थानेभ्य आगत्य एतेषां वनस्पतिविशेषाणां मूलतया समुत्पद्यमाना अत्रोत्पतिं लभन्ते इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'एवं' इत्यादि, ‘एवं एत्थ वि मूलादिया दस उद्देसगा जहेब सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियब्वं' एवम् अत्रापि मूलादिका दश उद्देशकाः यथैव शालीनाम्, तृतीयवर्ग-सोद्देशक द्वितीय वर्ग का निरूपण करके अब सूत्रकार औषधिरूप बनस्पतिजातीय अतसी (अलसी) आदि धान्यविशेषका निरूपग करने के लिये तृतीयवर्ग का कथन करते हैं 'अह भंते ! अयसी कुसुंभ' इत्यादि सूत्र इस वर्ग का प्रथम सूत्र है। ____टीकार्थ--गौतमस्वामी ने इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कांग, राल, तूअर, कोदूसा, सण और सरसों तथा मूलकयीज, इन वनस्पतियों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'एवं एस्थ वि मूलादिया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियब्ध' हे गौतम ! यहां पर भी शालि उद्देशक के त्रीने ना प्रारम ઉદ્દેશાઓ સાથે બીજા વર્ગનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર ઔષધિરૂપ વનસ્પતિ જાતિના અતસી (અળસી) વિગેરે ધાન્ય વિશેનું નિરૂપણ કરવા માટે ત્રીજા વર્ગનું કથન છે. આ ત્રીજા વર્ગનું પહેલું સૂત્ર આ પ્રમાણે છે 'अह भते ! अयसी' त्यादि ___ -गौतम पानी मे २L सूत्रथी प्रभुने सयु ५७युछे ४-3 मान् मससी, सुप, १-४२, ४in, रास, तु१२ दुसा, सामने સરસવ અને મૂળાના બી આ વનસ્પતિના મૂળ રૂપે જે જી ઉત્પન્ન થાય છે, તે જ કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु ४३ छ -'एवं एस्थ वि मूलादिया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरव. खेसं तहेव भाणियव्वं' गौतम ! म विषयमा ५ शासि देशमi l શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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