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________________ १५२ भगवतीसूत्रे पृथवीकायिकानां न पश्चापि विकल्पाः परन्तु चतुर्थपश्चमावेव विकल्पों संभवत इत्याशयेन भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पुढवीकाइया नो छक्कसमज्जिया?' पृथिवीकायिका नो पदक समर्जिताः १, इति पथमविकल्यो न भवति १। 'नो नोछक्कस मज्जिया' नो न वा नो षट्कसमर्जिताः, पृथिवीकायिकाः, इति द्वतीयविकल्पो न भवति २। ‘नो छक्केण य नोछक्केण य सम. ज्जिया' न वा षट्केन नोषट्केन च समर्जिताः पृथिवीकायिका इति तृतीयविक पोऽपि न भवति किन्तु 'छक्केहि-समज्जिया' षट्कैः समर्जिताः पृथिवोकायिकाः एषः चतुर्थविकल्पो भवति ४, तथा 'छक्के हिय नो छक्केण य समज्जिया वि' षट्कैश्च नो षट्केन समनिता अपि पृथिवी कायिकाः, इति पश्चयो विकल्पो. ऽपि भवत्येवेति, ५, कथं पृथिवी कायिकाः चतुर्थपञ्चमविकल्पाभ्यामेव समनिता न तु प्रथमद्वितीयतृतीयविकल्पैः ? तत्र कारणं ज्ञातुं प्रश्न यन् आह-'से केणडेणं' और एक नो षक से समर्जित होते हैं ५ इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु इस अभिप्राय से कि पृथिवीकायिकों के पांचों विकल्प नहीं होते हैं किन्तु चतुर्थ और पंचम ऐसे दो ही विकल्प होते हैं इस प्रकार से कहते हैं-'गोयमा! पुढ जीकाइया नो छक्कसमजिया' हे गौतम ! "पृथिवीकायिक जीव षटक समर्जित नहीं होते हैं, नो षट्क समर्जित नहीं होते हैं, एक ष क और एक नो षट्क इनसे भी समर्जित नहीं होते हैं किन्तु थे 'छक्केहि समज्जिया' अनेक षट्कों से समर्जित होते हैं ऐसा यह यह चतुर्थ विकल्प यहां बनता है तथा 'छक्केहि य नो उक्केण य समज्जिया वि' अनेक षट्कों से एवं एक नो ष क से वे समर्जित होते हैं। ऐसा यह पांचवां विकल्प भी बनता है। અનેક ષથી અને એક ને પકથી સમજીત હોય છે? ૫, આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં પ્રભુ એ અભિપ્રાયથી કે પૃથ્વિકાયિકને પાંચ વિક થતા નથી પરંતુ ચા અને પાંચમે એમ બે જ વિકલ હોય છે. એ પ્રમાણે કહે છે. 'गोयमा पुढवीकाइया नो छक्कसमज्जिया' 8 गौतम वी४ि ७१ पद સમજીત હોતા નથી અને તે પક સમર્જીત હોતા નથી એક ષક અને એક ને ષકથી પણ સમજીત પણ લેતા નથી, પરંતુ તેઓ “જિં पमज्जिया' भने पट्थी समय छे. मे प्रमाणे येथे वि३८५ मडिया भने छ. तथा 'छक्केहिय नो छक्केण य समज्जिया वि' भने पाथी भने એક ને ષટુકથી તેઓ સમજીત હોય છે, એ આ પાંચમે વિ૫ પશુ બને છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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