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________________ १०२ भगवती सूत्रे पन्नत्ते' तिर्यक् कियान् गतिविषयो - गमनक्षेत्रम् मज्ञप्तः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'से णं इओ एगेणं उप्पारण' स जंघाचारणः खलु इतः अस्मात् स्थानात् एकेनोत्पातेन 'रुयगवरे दीवे समोसरणं करेइ' रुचकवरनामके द्वीपे त्रयोदशं समवसरणं स्थितिं करोति तत्र स्थितो भवति तत्र गच्छतीत्यर्थः 'करिता ' कृत्वा रुवकवरद्वीपे समवसरणं कृत्वा तत्र गत्वा इत्यर्थः, ' तर्हि वेइयाई' बंद ' तत्र - चैश्यानि - ज्ञानानि यदेव भगवता प्रतिपादितं तरसत्यमित्येव श्रुतादिज्ञानानि वन्दते 'वंदित्ता' वन्दित्वा 'तओ पडिनियतमाणे' ततोरुचकरद्वीपात्प्रतिनिवर्तमानः 'बितीरणं उप्पाएणं' द्वितीयेन उत्पातेन 'नंदीसरarata समोसरणं करे' नन्दीश्वरवरद्वीपे समवसरणं स्थितिं करोति नन्दीश्वरद्वीपं चारण की सामान्यरूप से जो शीघ्रगति आपने प्रगट की है वह तो मैंने जान ली है - अब मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि जंघाचारणमुनि कि तिर्यग्गति का विषय कैसा है ? अर्थात् उनका तिर्यग्गमन क्षेत्र कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोधमा । से णं इओ एगेणं उपाएणं' हे गौतम! वह जंघाचारणमुनि स्वाधिष्ठित स्थान से एक उत्पातद्वारा १३ वें रुचकवर नामके द्वीप में स्थित होता है 'करिता तर्हि चेहयाई वदह' वहां स्थिर होकर पहुंचकर वह इस भावना से कि जो कुछ भगवान् जिनेन्द्र ने कहा हैं वह सत्य है उन जिनेन्द्रों के श्रम आदि ज्ञानों की बन्दना करता है। 'वंदिता तओ पडिनियतमाणे' बन्दना करके फिर वह वहां से लौटता हुआ 'बिलीएणं उप्पाएणं' द्वितीय उत्पात से - 'नंदीसरवरदीवे समोसरणं करेह' नन्दीश्वर नामके - ચારણની સામાન્ય રૂપથી જે શીઘ્રગતિ આપે પ્રગટ કરી છે, તે મેં જાણી છે. હવે આપની પાંસે એ જાણવા ઈચ્છા રાખું' છું કે-જ ઘાચારણમુનિની તિય ગતિના વિષય કેવા છે ? અર્થાત તેએનું તિય ગમનક્ષેત્ર કેટલું છે ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलु छे - 'गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पादणं०' હૈ ગૌતમ ! તે જ ઘાચારણ મુનિ પેાતાના સ્થાનથી એક ઉત્પાતથી ૧૩ તેરમાં ३१२ द्वीपमा ४६ श छे. 'करिता तर्हि चेहयाई वदह' त्यांने तेथे એ ભાવનાથી કે જીનેન્દ્ર ભગવાને જે કાંઈ કહ્યું છે, તે સત્ય છે. તે ભગबानना श्रुतज्ञान विगेरेनी वहना पुरे छे, याने ' वंदिता तओ पडिनियतमाणे वहनाने पछी त्यांथी पाछा बजीने 'बितीएणं उप्पाएणं' भील उत्पातथी 'नंदीसरवरदीवे समोसरणं करेइ' नन्हीश्वर नामना आभा द्वीपभां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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