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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०६ सू०१ सचेतनामचेतनानामनेकस्वभावत्वम् ६९ कपित्थफलमिति । 'अंबा अंबिलिया' अम्मा-अम्लरसोपेतं तक्रमिति निश्चयनय. मतेन तु वर्णादिसर्वपदोपेता एव, 'महुरे खंडे' मधुरः खलु शर्करा व्यवहारनयमतेन मधुररसयुक्तैन निश्चयनयमतेन तु वर्णादिसर्वपदोपेता। 'कक्खडे वरे' कर्कशो वज्रः । वज्रस्य स्पर्शः कर्कशो व्यवहारनयमतेन निश्चयनयमतेन तु वर्णादारभ्याष्टविधस्पर्शवान् 'मउए नवणीर' मृदुकं नवनीतम् नवनीते मृदुस्पर्शः व्यवहारनयमतेन प्रधानतया मृदुत्वस्यैव अनुभवात् निश्चयमतेन तु पञ्चवर्णाः द्वौगन्धौः पश्चरसाः अष्टापि स्पर्शाः विद्यमानाः सन्ति, 'गरुए अए' गुरुकम् अयःप्रकार से व्यवहारनय से कपित्थ-कैथ कषायरसोपेत कहा गया है और निश्चयनय से वह रूपरसादि सर्वगुणोपेत कहा गया है । 'अंबा अंपलिया' इसी प्रकार से आम्र, खट्टा कहा गया है। क्योंकि प्रधानरूप से उसमें आम्लरस ही रहता है। तथा निश्चय नय के मत के अनु. सार उसमें पांचों ही रस पांचों ही वर्ण, दो गंध और आठ स्पर्श रहते हैं। 'महुरे खंडे' व्यवहारनय की अपेक्षा से खांड़ मधुर ही है और निश्चयनय के मत से वह पांचवर्ण, पांचरस आदिवाली है । 'कखडे. वहरे' व्यवहारनय की अपेक्षा से वज्र कर्कश है अर्थात् वज्र में कर्कश (कठोर) स्पर्श है तथा निश्चयनय की अपेक्षा से वह वर्ण से लेकर आठों ही स्पर्शवाला है। 'म उए नवणीए' व्यवहारनय की अपेक्षा से नवनीत मक्खन मृदु वाला है और निश्चयनय की अपेक्षा से वह पांचवर्णों वाला दो गंधवाला पांच रसोंवाला और आठ स्पर्शवाला है। 'गरुए अए' लोह व्यवहारनय की अपेक्षा से भारी स्पर्शवाला है કપિત્થ-કઠું કષાય-તુલા રસવાળું કહેલ છે. વ્યવહારનયના મત પ્રમાણે પાંચ१ पायरस, मेध भने मा १५ वायु मानेत छ. " अंबा अंबालिया" એજ રીતે વ્યવહારનયના મત પ્રમાણે કેરી ખાટી માનવામાં આવી છે કેમકે તેનામાં મુખ્ય પણે તે રસ રહેલ છે. અને નિશ્ચયનયના મત પ્રમાણે તેમાં પાંચે २स, पाये वणु, में अध मन मा४ २५॥ २७॥ छे. "महुरे खंडे" ०यवहार નયને મત પ્રમાણે ખાંડ મીઠી જ છે. અને નિશ્ચયનયના મત પ્રમાણે તેમાં ५iuqg, पायरस, मे. ध म 2418 २न। २५ २७सा छे. “कक्खडे पहरे" ०५१४२नयना मत प्रमाणे १०० ४४ छे. (१२) २५२ वाणु छ. भने मा४ २५१गु छे. "मउए णवणीए" ०यपहारनयी पेक्षायी मास] भूड --કમળ પશવાળું છે. અને નિશ્ચયનયના મંતવ્ય પ્રમાણે તે પાંવ, પાંચ २स, में 14 भने म २५ ।छे. "गरुए अए" दु'-०५१६२नयन। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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