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________________ - भगवतीस्त्रे शेषाणामेकय बनान्ततां चाश्रित्य पश्चदशो मङ्गः १५ । 'सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य हालिद्दए य सुकिल्लए य १६' स्यात् कालाच नीलाच लोहितश्च हारिद्रश्च शुक्लवेति प्रथम द्वितीययो हुवचनान्ततां शेष णामेक वचनान्ततां चाश्रित्य षोडशो भङ्गो १६ भवतीति । 'एए सोलसभंगा' एते पोडश भंगा भवन्ति, 'एवं सबमेर एक्का-दुयग-तियग-चउक्का-पंग संजोगेणं दो सोला भंगसया भवति' एवं सर्वे एते एक-द्विक-त्रिक-चतुष्क-पश्चकसंयोगेन द्व पोडश भङ्गशते भवतः षोडशाधिकशतद्व अपमाणा भङ्गा भान्धीति भावः । तथाहि-असंयोगिनः पञ्च भङ्गाः ५, द्विसंपोगिनश्चत्वारिंशद् भङ्गाः ४०, त्रिकसंयोगिनोऽशीतिभङ्गाः अनेक प्रदेश लोहित वर्णवाले, एक प्रदेश पीले वर्णवाला और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इसमें प्रथमपद में और तृतीयपद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता की गई है 'सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुश्किल्लए य १६' यह सोलहवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्ण वर्णवाले, अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले, एक प्रदेश लोहित वर्णवाला, एक प्रदेश पीले वर्णवाला और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इस भंग में प्रथमपद में और द्वितीय पद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता की गई है 'एए सोलस भंगा' ये सब १६ भंग हैं 'एवं सव्यमेए एक्कग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचग संजोगेणं दो सोला भंगसया भवंति' इस प्रकार वर्णविषयक कल भंग एक वर्ण के, एवं दो वर्गों, तीन वर्गों, चार वर्णों, एवं पांच वर्षों को मिलाकर यहाँ पर २१६ होते हैं वे इस प्रकार-एक वर्ण के असयोगी भंग ५, दो वर्गों के संयोगजन्य भंग ४०, तीन वर्गों के संयोगजन्य भंग८०, चार वर्णों के संयोगजन्य કેઇ એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે તથા કોઈ એક પ્રદેશમાં સફેદ વર્ણવાળો હોય છે. આ ભંગમાં પહેલા અને ત્રીજા પદમાં બહુવચન અને माडीना ५मा सवयनने प्रयासों छे. १५ 'सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियए य, हालिदए य, सुकिल्लए य १६' त पाताना मने प्रशामा કાળા વર્ણવાળ હોય છે. અનેક પ્રદેશમાં નીલ વર્ણવાળો હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણ વાળું હોય છે. એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે, અને કઈ એક પ્રદેશમાં સફેદ વર્ણવાળે હોય છે. આ ભંગમાં પહેલા અને બીજા પદમાં मक्यन अने माहीना पह। येषयनथी हे छे. 'एएसोलस भंगा' मारीतमा भूख से भी छे. 'एवं सव्वमेए एककग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचग-संजोगेणं दो सोला भंगसया भवंति' मारीत व समधी से ना मन मे पनि ત્રણ વા, ચાર વર્ણો અને પાંચ વર્ણોના કુલ ભંગો અહિંયા ૨૧૬ બસ સેળ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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