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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०५ सप्तप्रदेशिकस्कन्धस्य वर्णादिनि० ७४३ भङ्गः ७, 'सिय कालए य नीळगा य लोहियए य हा लइए य मुकिराए य ८' स्यात् कालच नीलाइव लोहितश्च हारिद्रश्च शुक्लाश्चेति द्वितीये बहुवचनान्तता शेषेषु एकवचनान्ततामाश्रित्याष्टमोमङ्गः ८ । 'सिय कालए य नीलगा य लोहियए य हालिद्दए य सुकिल्लगा य ९' स्यात् कालश्च नीलाश्च लोहितश्च पीतश्व शुक्लाइवेति द्वितीयचरमयोबहुवचनान्ततां शेषेषु एकवचनान्ततां चाश्रित्य नवमो भगः ९ । 'सिय काल र य नीलगाय लोहियए य हालिदगा य मुकिल्लए य १०' स्यात् कालश्व नील इव लोहितश्च हारिद्राश्च शुक्लश्चेति द्वितीय चतुर्थयोर्वहुवचनान्तता तृतीय और चतुर्थ पद में बहुश्चनता और शेषपदों में एकवचनता है 'सिय कालए य नीलगा य लो हेयए य हालिहए य सु केल्लए य८' यह आठवां भंग है इसके मन्तव्यानुमार उसका एक प्रदेश कृष्ण वर्णवाला अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले एक प्रदेश लोहित वर्णमाला, एक प्रदेश पीले वर्णवाला और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इस भंग में केवल द्वितीय पद में बहुवचनता और शेष पदो में एकवचनता हुई है 'सिय कालए य नीलगा य, लोहियए य, हालिहए य, सुक्किल्लगा य ९' यह नौवा भंग है इसके अनुसार उसका एक प्रदेश कृष्ण वर्णवाला, अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले, एक प्रदेश लोहित वर्ण पाला एक प्रदेश पीले वर्णवाला एवं अनेक प्रदेश शुक्ल वर्णवाले हो सकते हैं ९, इस भंग में द्वितीय और पंचम पद में यहुवचनाता की गई है, शेष पदों में एकवचनता है 'सिय कालए य, नीलगाय, लोहियए य, हालिहगा य सुक्किलए य १०' यह दशवां भंग है इसके कथनानु. सार उसका एक प्रदेश कृष्ण वर्णवाला, अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले, एक प्रदेश लोहित वर्णवाला, अनेक प्रदेश पीले वर्णवाले और एक હોય છે. આ ભંગમાં કેવળ બીજા પદમાં બહુવચન અને બાકીના પદમાં मे क्यनने प्रयास रेत छे. ८ 'सिय कालए य, नीलगा य, लोहियए य, हालिहए य, सुकिल्लगा य ९' ते ४ प्रदेशमा जाप पाणी मने प्रदेशमा નીલવર્ણવાળો એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળો એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો અને અનેક પ્રદેશોમાં સફેદ વર્ણવાળો હોય છે. આ ભંગમાં બીજા અને पायमा ५४मा महुवयन भने माडीना पहोमा सवयन त छ. ८ 'सिय कालए य, नीलगा य लोहियए य हालिहगा य सुकिल्लए य१०' तेनो प्रदेश કાળા વર્ણવાળો હોય છે. અનેક પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળા હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશ લાલ વર્ણવાળ હોય છે. તથા અનેક પ્રદેશે પીળા વર્ણવાળા અને કોઈ એક પ્રદેશ સફેદ વર્ણવાળો હોય છે, આ ભંગમાં બીજા અને ચોથા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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