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________________ भगवतीसूत्रे कालए य हालिइए य४, सिय कालए य मुकिल्लए य४, सिय नीलए य लोहियए य४, सिय नीलए य हालिइए य४, सिय नौलए य सुकिल्लए य४, सिय लोहिपदों के अपधानता में हुए हैं ऐसा जानना चाहिये। अब नीलपद की प्रधानता करके और नीचे के पदों को उसके साथ योजित करके जो भंग बनते हैं वे इस प्रकार से हैं-'सिय नीलए य लोहियए घ ४' इस मूलभंग में भी चार भंग बनते हैं जो इस प्रकार से हैं-'सिय नीलए य लोहिए य १, सिय नीलए य लोहियगा य २, सिय नीलगा य लोहियए ३, सिघ नीलगा य लोहियगा य ४' ये ४ भंग नील और लोहित पद की एकता और अनेकता में बने हैं ऐसा समझना चाहिए। प्रथम भंग में दोनों पदों में एकत्व है १, द्वितीय भंग में प्रथम पद में एकत्य और द्वितीय पद में अनेकत्व २, है तृतीय भंग में प्रथम पद में अनेकत्व और द्वितीय पद में एकत्व है ३, चतुर्थ भंग में दोनों पदों में अनेकत्व है४, लोहित पद को छोडकर नीलपद के साथ पीतवर्ण को जोडकर जो चार भंग बनते हैं वे इस प्रकार से हैं-'सिय नीलए य हालिहए य १, सिय नीलए य हालिद्दगा य २, सिय नीलगा य हालिइए य ३, सिय नीलगा य हालिहगा य ४' ये चार भंग भी नील और पीतवर्ण के एकत्व और अनेकत्व को लेकर हुए हैं इसी तरह से नीलपद के साथ शुक्लवर्ण को योजित करके जो चार भंग बनते हैं वे इस प्रकार से हैं ધાનતાથી થયા છે. તેમ સમજવું. હવે નીલ પદની પ્રધાનતા રાખીને તથા બાકી ના પદેને તેની સાથે એને જે અંગે બને છે. તે આ પ્રમાણે છે'सिय नी उर य लोहिय ए य१' सिय नील र य लोहियगा य२ सिय नीलगा य लोहियएय ३ सिय नोलगा य लोहियगा य ४' मा यार सोनीaam भने सासવર્ણન એકપણ ને અનેકપણાથી થયા છે. તેમ સમજવું. પહેલા ભંગમાં બને પદે એકવચન વાળા છે. બીજા ભંગમાં પહેલા પદમાં એકપણું, અને બીજા પદમાં અનેક પણ કહ્યું છે ત્રીજા ભંગમાં પહેલા પદમાં અનેકપરા અને બીજા પદમાં એકપણું છે. ચોથા ભંગમાં બને પદોમાં અનેક પાસું છે. હવે લેહિત પદને છેડીને અને નીલપદ સાથે પીત-પીળા વર્ણને यो २२ या२ मा मन छेते मताव छ.--'सिय नीलए य हालिए य १ सिय नीलए य हालिद्दगा य२ सिय नीलगा य हालिदए य ३ सिय नीलगाय हालिहगा य४' मा यार 1 ५ नीना मेरा मन भने ५४ाथी अन्य। છે. એજ રીતે નીલપદની સાથે સફેદ વણને યે જીને જે ચાર ભેગો થાય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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