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________________ ६६८ भगवती सूत्रे लोहियए य हालिए य सुक्किल्लए य१. सिय नीलए य लोहियए य हालिदए य सुकिललगाय २, सिय नीलए य लोहियए य हालिगा य सुकिल्लए य ३, सिय नीलए य लोहियगाय हालिदए य सुकिल्लए य४, सिय नीलगाय लोहियए य जो इस प्रकार से हैं - 'सिय नीलए य लोहियए य हालिदए य सुक्किल्लए य' यह प्रथम भंग हैं इस भंग के अनुसार वह किसी एक प्रदेश में कदाचित नीलवर्ण वाला हो सकता है किसी एक प्रदेश में लोहित वर्ण वाला हो सकता है किसी एक प्रदेश में पीतवर्ण वाला हो सकता है और किसी एकप्रदेश में शुक्लवर्ण वाला हो सकता है १ 'सिय नीलए य लोहियए य हालिए य सुक्किलगा य २' यह द्वितीय भंग है इसके अनुसार वह एकप्रदेश में नीलवर्ण वाला हो सकता है एकप्रदेश में लोहितवर्ण वाला हो सकता है एकप्रदेश में पीतवर्ण वाला हो सकता है और अनेक प्रदेशों में शुक्ल वर्ण वाला हो सकता है २ 'सिय नीलए य लोहियए य हालिहगा य सुकिल्लए य३' यह तृतीय भंग है इसके अनुसार वह कदाचित् नीलवर्ण वाला हो सकता है कोई एक प्रदेश में लोहितवर्ण वाला हो सकता है अनेक प्रदेशों में पीतवर्ण वाला हो सकता है और एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला हो सकता है ३ 'सिय नीलए य लोहिया व हालिद्दर य सुकिल्लए व ४' यह चतुर्थ भंग है इसके अनुसार वह एकप्रदेश में नीलवर्ण वाला हो सकता है अनेक प्रदेशों में लालवर्ण वाला हो सकता है एक प्रदेश में पीतवर्ण सिय नीलए य लोहियए य हालिहर य सुकिल्लए य १' अर्ध वार તે પેાતાના કોઈએક પ્રદેશમાં નીલવર્ણ વાળા હાય છે. કેાઇ એક પ્રદેશમાં લાલવણું વાળા હોય છે. કઈ એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળા ઢાય છે. અને કોઈ એક પ્રદેશમાં સફેદવણુ વાળા હાય છે. એ રીતે આ પહેલા लग छे. १ 'त्रिय नीलए य लोहियए य हालिए य सुक्किल्लागा य २' अर्थ વાર તે પેાતાના એક પ્રદેશમાં નીલવણુ વાળો હેાય છે. કાઈ એક પ્રદેશમાં લાલવણુ વાળો હોય છે. કાઈ એક પ્રદેશમાં પીળાવણુ વાળો હાય છે. તથા અનેક પ્રદેશેામાં સફેદવણુ વાળો હાય છે, આ जीले लग छे. २ 'सिय नीलए य लोहियए य हालिएगा य सुक्किल्लए य३' अर्धवार ते पोताना ४ अहे. શમાં નીલવણુ વાળો હાય છે. કોઇ એક પ્રદેશમાં લાલવણુ વાળો હાય છે. અનેક પ્રદેશેામાં પીળાવણુ વાળો હાય છે. તથા એક પ્રદેશમાં સફેદવ વાળો होय छे. मे रीते मा त्रीले लौंग थाय छे. 3 ' 'सिय नीलए य लोहिया य हालिए य सुक्किल्लए य४' हैं। वार ४ प्रदेशमां नीसवार्थ वाणी हाय थे. અનેક પ્રદેશામાં લાલવણુ વાળો હાય છે. એક પ્રદેશમાં પીળાવણુ વાળો હોય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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