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________________ भगवतीस्त्र हारिद्रश्चेति सप्तमः । 'एवं कालगनीलगमुकिल्लएसु सत्त भंगा' एवं कालनील शुक्लेषु सप्तमझा, तयाहि-'सिय कालए नीलए मुकिल्लए१, सिय कालए नौलए मुकिलगा य२, सिय कालए नीलगा मुकिल्लए य३, सिय कालए नीलगा मुकिल्लगा य४, सिय कालगा य नीलए य सुकिल्लए य५, सिय कालगाय नीलए सचिल्लगाय ६, सिय कालगा य नीलगाय मुकिल्लए य७' स्यात् कालच नीलभ शुक्लश १, स्यात् कालच नीलश्च शुक्लाश्च २, स्यात् कालश्च नीलाश्च शुक्लव ३, स्थान हो सकता है 'स्यात् कालाश्च नीलश्च हारिद्रश्च' यह पांच भंग है इसके अनुसार वह अपने अनेक देशों में काले वर्णवाला हो सकता है किसी एकप्रदेश में नीलेवर्णवाला हो सकता है और किसी एक प्रदेश में पीले वर्णवाला हो सकता है 'स्यात् कालाश्च नीलश्च हारिद्राश्च यह छठा भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कालेवर्णवाले हो सकते है कोई एक प्रदेश नीलेवर्णवाला हो सकता है और अनेक प्रदेश उसके पीलेवर्णवाले हो सकते हैं 'स्यात् कालाश्च नीलाश्च हारिद्रश्च' यह सातवां भंग है इसके अनुसार वह अपने अनेक प्रदेशों में कालेवर्णवाला हो सकता है अनेक प्रदेशों में नीले वर्णवाला हो सकता है और एकप्रदेश में पीलेवर्णवाला हो सकता है एवं कालग नीलग सुकिल्लएस्तु सत्तभंगा' इस कथन के अनुसार काल नील और शुक्ल इनके संयोग में भी सात भंग होते हैं जो इस प्रकार से हैं-'सिय कालए मीलए सुकिल्लए य' यह प्रथम भंग है इसके अनुसार उसका एकदेश कृष्ण"स्यात् कालाइव नीलश्च हारिद्रश्च ५' हाय तपोताना मन देशमi samm વર્ણવાળે હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળે હોય છે. કોઈ એક प्रदेशमा पीपाजेय . माशते मी पायमा म छे. 'स्यात् काडकाच नीलश्च हारिद्राश्च ६' हायत भने प्रदेशमा पाडाय છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે. અને અનેક પ્રદેશોમાં પીળાपाणी य छ. को शत छी छे. ' 'स्यात् कालकाश्च नीलाइच हारिद्रश्च पार ते पाताना भने प्रदेशमा वाणे डाय छे. अने। પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે. તથા એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. એ રીતે આ સાતમે ભંગ થાય છે. છ હવે કાળા વર્ણની સાથે નીલ मन घोणा ना योगथी थता सात मी सतावे छे-'सिय कालए नीलए सुकिल्लए य १ त १२ पोताना शमा जापानहाय छे. એક દેશમાં નીલવર્ણવાળે હોય છે. તથા એક દેશમાં ધેળા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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