SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 653
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२० उ०५ २०३ पश्चप्रदेशिकस्कन्धनिरूपणम् ६३९ दुवमा जहेव चउप्पएसिए' एकवर्णद्विवर्णो एकवर्णः द्विवर्णश्च यथैव चतुःपदे शिकः चतुःप्रदेशिकस्य यथा एकवर्णवस्वं द्विवर्णवस्वं कथितम् तथैव पञ्चपदेशिक स्यापि वक्तव्यम् तथाहि-तत्रत्य प्रकरणम्-'जइ एगवन्ने सिय कालए य सिप नीलए य सिय लोहियए य सिय हालिद्दए य सिय सुकिल्लए य यदि एकवर्गस्तदा स्यात् कालश्च स्यात् नीलश्व स्यात् लोहितश्च स्यात् हारिद्रश्च स्यात् शुक्लश्च । यदि द्विवर्णः पञ्चपदेशिकः स्कन्धस्तदा 'सिप कालए य नीलए य१, सिय कालए य नीलगा य२, सिय कालगा य नीलए य३, सिय कालगा य नीलगा य ४' स्यात् सो ऐसा यह कथन 'एगवन्न दुवन्ना ज हेव चउपएसिए' चतुःप्रदेशिक स्कन्ध में जैसा एकवर्ण के विषय में और दो वर्ण के विषय में कहा जा चुका है वैसा ही यहां पर कहा गया है 'सिय कालए य, सिय नीलए य' इत्यादि प्रकरण वहीं का है यदि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध दो वर्णों वाला होता है तो वह 'सिय कालए य, नीलए, १' कदाचित् काले वर्णवाला और नीलेवर्णवाला भी हो सकता है १ 'सिय कालए य, नीलगाय २' अथवा एक प्रदेश उसका काला हो सकता है और अनेक प्रदेश उसके नीले हो सकते हैं 'सिय कालगा य नौलए य ३' अथवा-अनेक प्रदेश उसके काले हो सकते हैं और एक प्रदेश उसका नीला हो सकता है ३ 'सिय कालगो य नीलगा य ४' अथवा अनेक प्रदेश उसके काले हो सकते हैं और अनेक ही प्रदेश उसके नीले हो सकते हैं इस प्रकार से ये चार भंग कृष्ण एवं नील के एकत्व और ४थन 'एगान्नदुवन्ना जहेव च उपएसिए' या२ प्रदेशवाण २४ मा १५ પણમાં, અને બે વર્ણ પણામાં કેવી રીતે કહેવામાં આવ્યું છે. તે જ પ્રમાણે અહિયાં કહેલ છે. ___'सिय कालए य, सिय नीलए य' त्यात त्यांनु ४ प्र.२६ छ. २ ते पांय प्रदेशवाणी २४ मे १ वाजे। डाय त 'सिय कालए य नीलए य१' हाय जाणे! भने नीस पाणी डा श छ। 'सिय कालए य नीलगाय' 424 तने से प्रदेश ७ मा डाय छ भने भारी से प्रदेश नसावाणी डाय छ.२ 'सिय कालगाय नीलए य' या तना અનેક પ્રદેશ કાળાવર્ણવાળા હોઈ શકે છે અને તેને એક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળે है. छे 3 "सिय कालगा य नीलगा य'४ मथ। तेना भने प्रश १५. વાળા હોય છે. અને અનેક પ્રદેશો નીલવર્ણવાળા પણ હોઈ શકે છે કે આ રીતે ક ળ વર્ણ, અને નીલવર્ણન એકપણું અને અનેકપણાથી આ ચાર ભંગ બન્યા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy