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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्व निरूपणम् ६१९ रुक्षश्च २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्चेति चतुर्थस्तदेव स्पर्श द्वयवत्वे चत्वारो भंगाः भान्तीति, 'जइ तिफासे, यदि त्रिस्पर्श:-स्पर्शत्रयवान चतुःपदेशिकः स्कन्धस्तदा_ 'सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे १' सर्व : शीतो देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति प्रथमो भंग १ भंगव्यवस्था यहां पर भी हुई है ऐसा जानना चाहिये-परमाणुपुद्गल में दो स्पर्शवत्ता में ४ भंग कहे गए हैं जैसे-'स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च १ स्यात् शीतश्च रूक्षश्च २ स्वात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३ स्यात् उष्णश्च रूक्षश्व' इसी प्रकार से ये चार भंग यहां बनते हैं। ___'जह तिफासे' यदि वह चतुःप्रदेशिक स्कन्ध तीन स्पर्शों वाला होता है तो वहां भंगव्यवस्था इस प्रकारसे होती है___'सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' वह अपने समस्त देशों में शीत हो सकता है एकदेश में स्निग्ध और दूसरे देश में रूक्ष हो सकता है १ तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि चतुःप्रदेशिक स्कन्ध चार प्रदेशों से जन्य होता है-अतः उसके चारों ही प्रदेश शीतस्पर्शवाले हो सकते हैं और शीतस्पर्श वाले उन चारों प्रदेशों में से ही शीतस्पर्श वाले कोई दो प्रदेश तो स्निग्ध स्पर्शवाले और शीत स्पर्शवाले कोई दूसरे दो प्रदेश रूक्ष स्पर्शवाले हो सकते हैं यही देश में स्निग्धता और रूक्षता है यह इस प्रकार का प्रथम भंग हैપરમાણુ પુલમાં બે સ્પર્શીપણામાં ૪ ચાર ભંગો કહ્યા છે. જેમ કે– 'स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च' १ स्यात् शीतश्च रुक्षश्च २ स्यात् उष्णश्च किग्धश्च ३' स्यात् उष्णश्च रूमश्च ४' मा शत मा यार मांगी महिया जइ तिफासेन यार प्रदेशी २४ ऋण १५शवाणी जाय तोते म1 मा प्रमाणे ह्या छे. 'सम्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' त पाताना मा मागोमा " डा शो છે. એક ભાગમાં સ્નિગ્ધ અને બીજા એક ભાગમાં રૂક્ષ હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-ચાર પ્રદેશવાળ સ્કંધ ચાર પ્રદેશજન્ય હોય છે. જેથી તેના ચારે પ્રદેશ ઠંડા સ્પર્શવાળા હોઈ શકે છે. અને ઠંડસ્પર્શવાળા તે ચારે પ્રદેશમાંથી જ ઠંડા સ્પર્શવાળા કેઈ બે પ્રદેશો નિગ્ધસ્પર્શવાળા અને ઠંડા સ્પર્શવાળા બીજા બે પ્રદેશ રૂક્ષ સ્પર્શવાળા હોય છે. એજ દેશમાં સિનગ્ધતા ચિકાશ–ચિકણાપણું, અને દેશમાં રૂક્ષતા છે. આ રીતને આ पडे। म ४ो छ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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