________________
-
-
५८०
भगवतीसूत्र अत्रापि भङ्गास्त्रय एवम् तथाहि-सों रूक्षो, देशः शीतो, देश उष्ण इति प्रथमः १, सों रूक्षो देशः शीतो देशौ उष्णौ इति द्वितीयः २, सर्बो रूक्षो देशौ शीतो देश उष्ण इति तृतीयः ३, सर्वसंकलनया द्वादश भङ्गाः १२ भवन्ति । 'जइ चउफासे' यदि चतुःस्पर्श त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवेत्तहा 'देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' देशः शीतो देश उष्णः देशः स्निग्यो देशो रूक्ष इति प्रथमो भङ्गः १ । 'देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसा लुक्खा २' देशः शीतो देश सव्वे लुक्खे देसे सीए देसा सिणा२, सव्वे लुक्खे देसा सीया देसे उसिणे३' इस प्रकार से बने हुए ये सब भंग मिलकर बारह होते हैंतीन भंग शीतस्पर्श की प्रधानता के साथ स्निग्ध और रूक्ष को योजित करके ३ तथा तीन भंग उष्ण स्पर्श को प्रधानता के साथ स्निग्ध और रूक्ष को योजित करके बने हैं६ तथा स्निग्ध स्पर्श की प्रधानता के साथ शीत और उष्म स्पर्श को योजित करके ३तीन भंगे ९ और तीन रुक्ष स्पर्श की प्रधानता के साथ शीतऔर उष्ण स्पर्श को योजित करके बने हैं१२, ऐसे ये बारह भंग होते हैं अब चतुः स्पर्श वत्ता की प्रकारता का कथन करते हैं 'जह च उफासे' यह त्रिप्रदेशिक स्कन्ध चार स्पर्टी वाला होता है तो वह इस प्रकार से चार स्पों वाला हो सकता है
'देसे सीए देसे उसिणे देसे गिद्धे देसे लुक्खे' वह त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने एक देश में शीत स्पर्श वाला हो सकता है एकदेश में उष्ण स्पर्श सम्वे लुक्खे, देसे सीए, देसा उसिणार, सव्वे लुक्खे देसा सीया, देसे उसिणे३' આ રીતે આ તમામ ભંગ મળીને ૧૨ બાર થાય છે. શીત સ્પર્શની પ્રધાનતા સાથે સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ સ્પર્શને જવાથી ૩ ભંગ બને છે, ઉણ સ્પર્શની પ્રધાતામાં સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ સ્પર્શને જવાથી પણ ૩ ભગ બને છે. તથા સ્નિગ્ધ સ્પર્શની પ્રધાનતામાં શીત અને ઉષ્ણુ પશને જવાથી ૩ ભંગ બને છે તેમ જ રૂક્ષ સ્પર્શની પ્રધાનતામાં શીત અને ઉષ્ણુ સ્પર્શને જવાથી પણ ૩ ભંગ બને છે. એ પ્રમાણે કુલ ૧૨ બાર બને છે.
हवे या२ २५शा मनो मताव छ. 'जइ चउफासे' मा ત્રણ પ્રદેશવાળે સ્કંધ જે ચાર પશેવાળ હોય છે તો આ प्रभावना या२ प्रोपाजो मन छे. 'देसे सीए देसे उसिणे देसे गिद्धे देसे लुक्खे' ते ३ प्रदेशवा। २४ पाताना मे देशमा शात २५शવાળો હોઈ શકે છે. અને એક દેશમાં ઉષ્ણુ સપર્શવાળ હોઈ શકે છે. એક
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩