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________________ भगवतीस्त्र स्निग्धों देशो रूक्ष इति तृतीयः ३ ! उगत्वमाश्रित्य भङ्गाः पदयन्ते 'सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वउष्णो देश: स्निग्धो देशो रूक्षः सर्वा शे उष्णता एको देशः स्निग्धस्तदपरो देशो रूक्षः, 'एत्य वि भंगा तिनि' अत्रापि मनास्त्रयः यथा सर्व उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूक्ष इति प्रथमः १, सर्व उष्णो तथा उस के दो अंश स्निग्ध हो सकते हैं और एक अंश उसका रूक्ष हो सकता है। ये ३ भंग शीत स्पर्श को मुख्य करके एवं स्निग्ध और रूक्ष गुणों को उसके साथ योजित करके प्रकट किये गये हैं ३। अब उष्ण स्पर्श को मुख्य करके और स्निग्ध रूक्ष स्पर्श को उसके साथ योजित करके भंग प्रकट किये जाते हैं-'सने उसिणे, देसे निद्धे देसे लुक्खे' वह सर्च देश में उष्ण हो सकता है, एक प्रदेश में स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है तथा एक परिणाम वाले दो देशों में एकत्व की विवक्षा से वह एक देश में रूक्ष भी हो सकता है १ यह प्रथम भंग है 'सव्वे उसिणे देसे निद्ध देसा लुक्खा' सर्व उष्णः देश स्निग्धो, देशो रूक्षौ' यह द्वितीय भंग है इस में वह सर्वरूप में उष्ण हो सकता है एक देश में स्निग्ध हो सकता है और दो देशो में रूक्ष हो सकता है यहां तृतीय पद को अनेक वय. मान्त किया गया है २, द्वितीयपद को अनेक व वनान्त करने पर तृतीय भंग इस प्रकार से है 'सरे उसिणे दे से निद्ध देसे लुक्खे' सर्वः उष्णः, देशाः स्निग्धः देशो रूक्षः' इस भंग में उसके सर्व अंश तीनों प्रदेश उष्ण हो सकते हैं दो प्रदेश स्निग्ध हो सकते हैं और एक प्रदेश रूक्ष भी हो તેના બે અંશો સ્નિગ્ધ હોઈ શકે છે તથા એક અંશ તેને રૂક્ષ હેઈ શકે છે. શીત પર્શને મુખ્ય બનાવીને અને સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ ગુણેને તેની સાથે ચોજીને આ ત્રણ ભંગ બતાવ્યા છે. હવે ઉભુ પર્શને મુખ્ય બનાવીને અને સ્નિગ્ધ તથા રુક્ષ સ્પશને तनी साथे याने मग पावमा आवे छे. 'सव्ये उसिणे, देसे निद्ध देसे लाखे' ते सशथी ४ २५शवाणो हो । छ. ॐ प्रदेशमा निध પર્શવાળ હોઈ શકે છે. તથા એક પરિણામવાળા બે પ્રદેશમાં એકત્વની વિવક્ષાથી તે એક દેશ માં રૂક્ષ પણ થઈ શકે છે. આ રીતે આ પહેલે ભંગ છે. डवे मी मारे छे.-'सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुखे' सर्व उष्णः देशः स्निग्धः देशो रूमः' मा win anni मे. पता । सब ३५थी ते sy ૨૫શવાળ હોઈ શકે છે. અને તે એક દેશમાં સ્નિગ્ધ પર્શવાળે પણ હોઈ અને બે દેશમાં રૂક્ષ પશવાળે હોઈ શકે છે. આ ભંગમાં ત્રીજા ચરણને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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