________________
५५८
भगवतीसूत्रे यितुमाह-'जइ दुफासे' इत्यादि, 'जइ दुफासे' यदि द्विस्पर्शस्तदा 'सिय सीए य निदेय' स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च शीतोष्णस्निग्धरूपचतुःस्पर्शभध्यात् अविरोधिस्पर्शद्वयवान् यथा शीतश्च स्निग्धश्च ‘एवं जहे परमाणुयोग्गले' एवं यथैव परमाणुयुद्गलस्तथैव द्विपदेशिकस्कन्धोऽपि स्यात् शीतश्व स्निग्धश्च १ स्यात् शीतश्च रूक्षश्च २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षत्र इत्येवं रूपेण परमाणुपुद्गलादेश द्विप्रदेशिकपुद्गलस्यापि द्विस्पर्शविषये चत्वारो भा भवन्तीनि।
आता है जैसे 'स्यात् अम्लश्च मधुरश्च' १० इस प्रकार से आये हुए ये सब मिलकर असंयोगी ५ और द्विसंयोगी १० मिलकर १५ होते हैं तथा गंध विषयक भंग ३ होते हैं इस प्रकार वर्ण से लेकर रस तक के भङ्गों को प्रकट करके अय सूत्रकार इस द्विप्रदेशिक स्कन्ध में स्पर्श विषयक भङ्गों को दिखलाने के लिये कहते हैं-'जह दुफासे सिय सीएय निद्धेय' यदि विप्रदेशी स्कन्ध दो स्पर्शों वाला होता है तो उसमें स्पों की विप्रकारता इस प्रकार से हो सकती है-'सिय सिए य निढे य? सिय सीए य रुक्खे यर' सिय उष्णश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च ४ इस प्रकार से दो स्पर्शो के ये ४ भंग यहां होते हैं 'एवं जहेव परमाणु पोग्गले' परमाणु पुद्गल में जिस प्रकार से दो स्पर्शो के ४ भंग प्रकट किये गये हैं इसी प्रकार से यहां पर भी द्विप्रदेशी स्कन्ध में पूर्वोक्त रूप से ४ भंग प्रकट किये गये हैं शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इन चार स्पों અને મીઠા રસને ગૌણ બનાવીને ભંગ બનાવવામાં આવે તે એક જ ભગ अन है. -स्यात् अम्लश्च मधुरश्च १ २ री मनेसा सो सया મળીને એટલે કે-અસંયોગી ૫-પાંચ અને દ્વિકસોગી ૧૦ દસ મલીને ૧૫ પંદર ભંગે બને છે. તથા ગંધ સંબધી ૩ ત્રણ ભંગ બને છે.
આ રીતે વર્ણથી આરંભીને રસ સુધીના ભશે બતાવીને હવે સૂત્રકાર २५ समधी भो। मता११ माटे ४ छ -'जइ दुफासे सिय सीए य निद्धे य' ले में प्रदेशवाणे २४५ मे २५पा। डाय छे तमा पनि
प्रा२पाशु श य छ-'सिय सीए य निद्धे य'१ सिय सीए य, रुक्खे य२, सिय उष्गश्च स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च४' । शत मे २५शीना ॥ पूरित प्राथी ४ यार सगी मने छ. 'एवं जहेव परमाणुपोग्गले' ५२. માણુ પુદ્ગલમાં જે રીતે બે સ્પર્શેના ૪ ચાર ભંગ બતાવ્યા છે. એ જ પ્રમાણે અહિયાં પણ બે પ્રદેશી ધમાં પહેલા કહ્યા પ્રમાણેના ૪ ચાર ભગે બતાવ્યા છે. શીત, ઠંડા ઉષ્ણુ-ગરમ સ્નિગ્ધ-ચિકણા અને રૂક્ષ-કઠોર આ ચાર પશેમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩