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________________ ५३६ भगवती सूत्रे विद्यते ? इति प्रश्नः, उत्तरमाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! पंचविहे इंदियोवचए पत्ते' पञ्चविधः - पञ्चप्रकारकः इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा ' तद्यथा - 'सोइंदियउवचए' श्रोत्रेन्द्रियोपचयः 'एवं बीओ इंदियउद्देसओ निरवसेसो भाणियन्त्रो जहा पनत्रणाए' एवं द्वीतियइन्द्रियोदेशको निरवशेषो भणितव्यो यथा प्रज्ञापनायाम्, यथा- प्रज्ञापनायां पञ्चदशस्य इन्द्रियपदस्य द्वितीयउद्देशकस्तथाऽयमपि वक्तव्यः । प्रज्ञापनाया द्वितीयोदेशक श्वेत्थम्, 'सोईदियोवचए - चक्खिदिओवचए - घाणिदिओवचए- रसर्णिदिओवचए - फार्सिदिओवचए' इत्यादि श्रोत्रेन्द्रियोपचयश्चक्षुरिन्द्रियोपचयो घ्राणेन्द्रियोपचयो रसनेन्द्रियोपचयः स्पर्शनेन्द्रियोपचय इत्यादि । ' सेवं भंने! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहर' प्रकार का है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! पंचविहे इंदियोवच पणते' हे गौतम! श्रोत्रादिक इन्द्रियों का उपचय पाँच प्रकार का कहा गया है 'तं जहा ' जैसे- 'सोइंदियउवचए' श्रोत्रेन्द्रिय उपer 'एवं बीओ इंदियउदेसओ निरवसेसो भाणियच्यो जहा पत्रवणाए इस प्रकार से जैसा कथन प्रज्ञावना सूत्र के १५ वें पद के द्वितीय उद्देशे में कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी कह लेना चाहिये वहां का द्वितीय उद्देशे का कथन इस प्रकार से है- 'सोइंदियोवचर, चक्खिंदिओवचए' घाणिदिओवचर, रसर्णिदिओश्चए फासिंदिओवचए' इत्यादि श्रोत्रे न्द्रियोपचय चक्षुइन्द्रियोपचय घ्राणेन्द्रियोपचय रसनेन्द्रियोपचय और अमरना है? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छे है - 'गोयमा ! पंचविहे इंदियो बच पन्नत्ते' हे गौतम श्रोत्र विगेरे इंद्रियांना उपयय पांथ प्रहारनो उडेल छे. 'तजहा' ते भा रीते छे. 'सोइंडियउवचए' श्रोत्र ईंद्रिय उपायय ' एवं बीओ इंदियउदेसओ निरवसेसो भाणियन्वो जहा पण्णवणाए' मा रीते પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ૧૫ પંદરમા પદ્મના બીજા ઉદ્દેશામાં જેવી રીતે કહેવામાં આવ્યુ છે, એજ રીતે અહિયાં પણુ સઘળું કથન સમજવું, ત્યાંના ખીજા ઉદ્દેશકનુ કથન આ પ્રમાણે છે. 'सोइंदिओवचर, चक्खिदिओषचप, घार्णिदिओवचए रसणिदिओवचए, फार्सिदिओवचए' त्यिाहि श्रोत्र इंद्रियोपयय यक्षु द्रियोपयय, प्रायु इन्द्रियो પચય, રસના ઈદ્રિચાપચય અને સ્પેન ઇન્દ્રિયાપચય ઈત્યાદિ. 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ' डे भगवन् खाप વાનુપ્રિયે જે ઇન્દ્રિયાપચયના સબંધમાં કથન કર્યું છે. તે સઘળુ” તેમ જ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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