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________________ ५१० भगवतीसूत्रे इति । धर्मास्तिकायस्थ पर्यायशब्दानभिधाय तद्विरोविनोऽधर्मास्तिकायस्य पर्या यशब्दान् दर्शयितुमाह - ' अधम्मस्थि' इत्यादि, 'अधम्मत्यिकायस्स णं भंते ।' अस्तिकायस्य खलु मदन्त ! धारणात् धर्मस्तद्विपरीतोऽधर्मः जीवपुद्गलाना स्थित उपकारीत्यर्थः अधर्मश्वासा अस्तिकायश्च प्रदेशराशिरित्यधर्मास्तिकायः, तस्य धर्मास्तिकायस्य खल भदन्त ! 'केवइया अभिवयणा पन्नत्ता' किया अभिवचनानि - पर्यायाः प्रज्ञप्तानि इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता' अनेकानि अभिवचनानि मज्ञप्तानि 'तं जहा ' तद्यथा 'अम्मे वा' अधर्म इति वा, 'अम्मत्थिकारह पादक हैं वे सब धर्म के साधर्म्य को लेकर इस धर्मास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द से व्यवहृत किये गये हैं ऐसा जानना चाहिये इस प्रकार से धर्मास्तिकाय के पर्याय शब्दों का कथन करके अब सूत्रकार तद्विरोधी अधर्मास्तिकाय के पर्याय शब्दों को दिखलाते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है - 'अधम्मत्थिकायस्स णं भंते ! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता' हे भदन्त अधर्मास्तिकाय के जो कि जीव और पुद् गलों को ठहरने में सहायक होता है पर्यायवाची शब्द कितने कहे गये हैं ? अधर्मरूप जो अस्तिकाय प्रदेशराशि है वह अधर्मास्तिकाय है धर्म से यह विपरीत स्वभाववाला होता है इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं- गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता' हे गौतम! अधर्मास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द अनेक कहे गये हैं । तं जहा' - जैसे 'अधम्मेइ वा ' अधर्म 'अधम्मस्थिकाएइ वा' अधर्मास्तिकाय 'पाणीइवाएर वा ' प्राणा પ્રતિપાદન કરવાવાળા જેટલા શબ્દો છે, તે તમામ ધમથી અધમ પણાથી આ ધર્માસ્તિકાયના પર્યાયવાચી શબ્દ રૂપે વ્યવહાર કરેલ છે. તેમ સમજવુ, આ રીતે ધર્માસ્તિકાયના પર્યાયશūનુ કથન કરીને હવે સૂત્રકાર અધર્માસ્તિકાયના પર્યાયવાચી શબ્દોનું કથન કરે છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામીએ अलुने गोवु पूछे छे - ' अधम्मत्थिकायस्स णं भंते ! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता' डे लगवन् अधर्मास्तिायना डे ने व मने युद्धसोने रहेवाभां સહાયક હૈય છે, તેના પર્યાયવાચક કેટલા શબ્દો છે? અધરૂપ જે અસ્તિ કાય–પ્રદેશરાશિ છે તે અધર્માસ્તિકાય છે ધમાઁથી એ ઉલટા સ્વભાવવાળું હાય છે. ગૌતમસ્ત્રાભીના આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु छे है- 'गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता' हे गौतम! अधर्मास्तियना पर्यायवाची शब्दो भने छे. 'तंजहा' ते या अमाले छे. 'अधम्मेर वा' अधर्म' 'अधमत्थिकाएइ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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