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________________ ३७४ भगवतीस्त्रे 'सिय भंते !' स्युर्भदन्त ! 'नेरइया महासवा अप्प किरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्ञ्जरा' नैरयिका महास्रवा अल्पक्रिया अल्पवेदना अल्पनिर्जराः किम् ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'णो इणट्ठे समड़े' नायमर्थः समर्थ: अयमष्टमोऽपि भट्टो नारकजीवानां विषये नाभिमतो नारकाणां क्रिया वेदयो हुत्वादित्यष्टमभङ्गः ८ । 'सिय भंते !' स्युर्भदन्त ! 'नेरइया अप्पासवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा' नैरयिकाः अलावा महाक्रिया महावेदना महानिर्जराय किम् ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो इणडे समट्ठे 'नायमर्थः समर्थः अयं नत्रमभंगो नारकजीवानां न घटते तेषामात्रस्य बहुत्वात् निर्जरायाश्चायत्वादिति नवमो भङ्गः ९ । 'सिय अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऐसा जो यह सातवां भंग है वह भी नारक जीवों में घटित नहीं होता है क्योंकि नारकों में क्रिया एवं वेदना ये दोनों भी अल्प नहीं होती है किन्तु महती ही होती है 'नेरइया महा सवा अपकिरिया, अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा' ऐसा जो यह आठवां भंग है वह भी इसी कारण से घटित नहीं होता है कि इस भंग के अन्तर्गत 'अपकिरिया अप्यवेयणा' ये जो दो विशेषण हैं वे वहां नहीं हैं क्योंकि उनकी क्रिया में और वेदना में अल्पता नहीं है प्रत्युत महत्ता ही है 'सिय भंते । नेरइया अप्पासवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा' ऐसा जो यह नौवां भंग हैं वह भी इसलिये नहीं सघता है कि नारकों में आस्रव की अल्पता नहीं है और निर्जरा की ही महत्ता नहीं है प्रत्युत वहां आस्रव की महत्ता और निर्जरा की अल्पता ही है । 'णो इट्टे समट्टे' मा अर्थ मरोमर नथी. अर्थात ? या सातभी लौंग છે તે પશુ નારકામાં ઘટતા નથી. કેમકે નારકામાં ક્રિયા અને વેદના એ બન્ને અલ્પ હેાતા નથી. પરતુ તેઓમાં માક્રિયાપણુ અને મહા बेहनाया होय छे. 'नेरइया महासवा अपकिरिया अप्पवेयणा अध्यनिज्जरा' આ પ્રમાણેના જે આઠમે ભંગ છે તે પણ તેઓમાં ઘટતા નથી. કારણ કે भ्या लगभां ? 'अप्पकिरिया अल्पवेयणा' मा रीतना मे विशेष छे, ते તેઓમાં હાતા નથી. કેમ કે તેની ક્રિયામાં વેદનાનુ અલ્પપણુ હતુ. नथी परंतु महानयागु ४ होय छे. 'सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा' मा प्रभानो ? नवभो लग छे ते તેઓમાં સંભવતા નથી કારણુ કે નારકામાં અલ્પાસવપણુ હેતુ નથી, તેમ જ મહાનિર્જરાપણું પણ હતું નથી. પરંતુ તેઓમાં મહાસ્રતપણુ અને અલ્પનિ રાપણુ હોય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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