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________________ ३५८ भगवतीसूत्रे स्वकर्मज्ञा, 'कुसला' कुशला आसोच्यकार्यकारिणी 'मेहावी' मेधाविनी सकृच्छुतदृष्टकर्मपरिज्ञानवती "निउणा' निपुणा उपायारम्मकारिणी इति (भग. श.१६ उ. ४) 'तिक्खाए' तिक्ष्णायां कठोरायाम् 'वइरामईए' वज्रमय्यां वज्रवत् कठिनायामित्यर्थः 'सहकरणीए' श्लक्ष्णकरणी सूक्ष्मचूर्णकारिणी पेषणशिला तस्याम् 'तिक्खेग' तीक्ष्णेन 'वइरामएणं' वज्रमयेन वज्रवत् कठोरेण 'वट्टवरएणं' वर्तकवरकेन प्रधानलोष्टकेन गोलाकारपेषणप्रस्तरेण 'लोढा' इति लोकमसिदेन 'एगं महं पुढवीकाइयं' एकं महत् पृथिवीकायिकम् 'जतु गोलासमाणं, जतु गोलसमानम् डिमरूपक्रीडनकं जतुगोलकप्रमाणं नातिमहत् तत् 'गहाय' गृहीत्वा 'पडिसाहरिय पडिसाहरिय' प्रतिसंहृत्य प्रतिसंहृत्य 'पडिसंखिविय पडिदौडना है इस रूप व्यायाम में जो दक्ष हो 'छका' प्रयोगज्ञ हो 'दक्खा' शीघ्रता से प्रत्येक कार्य करनेवाली हो 'पत्तट्ठा' अपने काम को जाननेघाली हो 'कुसला' काम करनेवाली हो 'मेहावी' एकवार में ही सुने गये अथवा देखे गये काम को जाननेवाली हो 'निउणा' निपुण हो-उपाया. रम्भकारिणी हो (भग० श० १६ उ० ४) ऐसी वह दासी 'तिक्खाए' तीक्ष्ण-कठोर 'वइरामएणं' वज्रमय 'सहकरणीए' सूक्ष्म चूर्णकरनेवाली शिला के ऊपर 'तिक्खेण वहरामएणं' तीक्ष्ण वज्रमय कठोर वज्र के जैसी कठिन 'चट्टवरएणं' गोल आकारवाली लोढी से पीसे, क्या पीसे तो कहते हैं-'एगं महं पुढवीकोइयं जतुगोलासमाणं' लाख के गोला जैसे पृथिवीकायिक को पीसे पीसते समय वह शिला पर और लोढी पर चिपक गये उस पृथिवीकायिक को 'पडिसाहरिय २' वार २ छुडावे और छुडाकर પ્રમાણે છે. આવા પ્રકારના વ્યાયામમાં જે કુશળ હોય છે પ્રેગને नावाजी डाय 'दक्खा' शीताथी ४२४ सय ४२पापाजी हाय 'पत्तद्रा' पाताना छाया नावाजी डाय 'कुसला' शताथी म ४२वावाजी राय 'मेहावी' मे०१ १२ सोमणेता अथवा नये आमने नारी डाय 'निउणा' निपुष्य डाय-पायनी माल ४२नारी डाय (म. श. १६ 6. ४) मेवी माहासी. 'तिखाए' तीक्ष्य हो२ 'वइरामएण' १००मय 'सह करणीए' सूक्ष्म ल यूथ ३२वावाजी Nिat-५५२ उभ२ तिक्खेण वइरामपणं' तीक्ष्ण १००मय हारअर्थात् १०॥ २१॥ ४४ वट्टवर एणं' गाण २ना ५२वटाथी वाटे. शु पाटन भाट छ8-'एगं महं पुढवीकाइयं जतुगोलासमाणं' सामना ગોળા જેવા પૃવિકાયિકને વાટે-અને વાટતી વખતે તે શિલા પર અને ઉપર ५। ५२ वाटी गयेा त पृथ्वीजयिने-'पडिसाहरिय पडिसाहरिय' पारपार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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